गुरुवार, 26 अगस्त 2010

प्रिय याद तुम्हारी आती है

प्रिया याद तुम्हारी आती है

शीतल मंद सुगंध पवन
जब मुझसे कुछ कह जाती है
रिमझिम सावन की बूंदे
जब धरती की प्यास बुझती है
और वाटिका मे कोयल जब
मीठे गीत सुनती है
बैठ अकेले कमरे में जब यादें
मीठे स्वप्न सजाती हैं
प्रिय याद तुम्हारी आती है
सावन भौरें कोयल के गीत
सब बेमानी हो जाती है
जब याद तुम्हारी आती है
प्रिय याद तुम्हारी आती है

शनिवार, 14 अगस्त 2010

घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.

घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.

खेलता था आम की डाली पे जो
नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
घर की बातें ..................................

घर के आँगन में वो पौधा एक तुलसी का ,
हर प्रात उस तुलसी की पूजा मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वहां पे लेप मिटटी का ,
शाम के जलाते दिए को मैं नहीं भूला !
इन पलों को इन छनो को मैं संजोता हूँ !!
घर की बातें ...............................

हर रोज गंगा के किनारे सूर्य का ढलना ,
औ चमकते चाँद सा जल मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वो बहती दूर जाती नाव को ,
और वो गंगा की कलकल मैं नहीं भूला !
आज भी गंगा किनारा याद करता हूँ !!
घर की बातें ..............................

रविवार, 8 अगस्त 2010

चोट से मत ब्यथित हो मन

चोट से मत ब्यथित हो मन
चोट खा - खा के ही पत्थर मूर्ति का आकर लेता
इस धरा पर अर्चना का निज कई आधार देता
नित नया अवतार हो तुम
अडिग रह , ना धैर्य खो मॅन

निज हाथ में ले तुलिका ब्रह्मांड मे नवरंग भर दे
नये अक्षर नये स्वर से इक नयी उमंग भर दे
तुम रहो मौलिक भी ऐसे
जैसे खुद का हो सृजन

जाति भेद से जलते जग मे समता भाव की ब्रिष्टि कर दे
मलयाचल मंद सुगंध पवन हो ऐसी सुंदर सृष्टि कर दे
तुम भी सुंदर बन लो ऐसे
जैसे कोई हो आकर्षण

नभ से उँचे उठ कर के तुम अपनी पहचान बनो
परिवर्तन के साथ चलो तुम इतना गतिमान बनो

लो अतीत से केवल उतना
जितना तुमको हो पोषण

रविवार, 1 अगस्त 2010

मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है

मित्र दिवस पर समर्पित एक कविता


मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है
जैसे पवन में सुगंध की मिठास है
मित्रता एक अतुलनीय सम्मान हैं विश्वास है
दुख के अंधेंरे में सुख का प्रकाश है
मित्रता कड़ी धूप में बरगद कि छाँव है
तपती हुई रेत पर रास्ते बताते हुए पाँव है
मित्रता आप से आपकी पहचान है
अपने गुनो अवागुणो का ज्ञान है
मित्रता अहं राग द्वेष ईर्ष्या का हवन है
प्रेम सौहार्द कर्म ज्ञान से निर्मित भवन है

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