रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
और चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
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- मैं लगा दूँ आग इस संसार में है
- प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर,
- जानती हो, उस समय क्या कर गुज़रने
- के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
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रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ’ उजाले में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों के साथ परदे को उठाता,
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- एक चेहरा-सा लगा तुमने लिया था,
- और मैंने था उतारा एक चेहरा,
- वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने पर
- ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
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रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
और उतने फ़ासले पर आज तक सौ
यत्न करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम,
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- और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ,
- क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं--
- बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
- रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
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रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
wahaa kya baat hai ... harivanshrai bacchan ji ki is kavitaa ko yahan laakar share karne ke liye bahut-bahut dhnyvaad ....
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है साथ ही आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी की प्रतीक्षा भी धन्यवाद.... :)
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंऔर फिर आप के इस बेहतर संकलन के लिए भी शुभकामनाएं .
Nice .
जवाब देंहटाएंसरे ज़माना आशिक़ मिलते कहां हैं ?
हॉर्मोन में उबाल प्यार तो नहीं
पानी बहा देना प्यार तो नहीं
क़तरा जहां से भी टपके
आख़िर भिगोता क्यों है
ये इश्क़ मुआ जगाता क्यों है ?
ये पंक्तियां डा. मृदुला हर्षवर्धन जी के इस सवाल के जवाब में
अब सो जाऊँ या जागती रहूँ ?