घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.
खेलता था आम की डाली पे जो
नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
घर की बातें .............................. ....
घर के आँगन में वो पौधा एक तुलसी का ,
हर प्रात उस तुलसी की पूजा मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वहां पे लेप मिटटी का ,
शाम के जलाते दिए को मैं नहीं भूला !
इन पलों को इन छनो को मैं संजोता हूँ !!
घर की बातें .............................. .
हर रोज गंगा के किनारे सूर्य का ढलना ,
औ चमकते चाँद सा जल मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वो बहती दूर जाती नाव को ,
और वो गंगा की कलकल मैं नहीं भूला !
आज भी गंगा किनारा याद करता हूँ !!
घर की बातें ..............................
खेलता था आम की डाली पे जो
नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
घर की बातें ..............................
घर के आँगन में वो पौधा एक तुलसी का ,
हर प्रात उस तुलसी की पूजा मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वहां पे लेप मिटटी का ,
शाम के जलाते दिए को मैं नहीं भूला !
इन पलों को इन छनो को मैं संजोता हूँ !!
घर की बातें ..............................
हर रोज गंगा के किनारे सूर्य का ढलना ,
औ चमकते चाँद सा जल मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वो बहती दूर जाती नाव को ,
और वो गंगा की कलकल मैं नहीं भूला !
आज भी गंगा किनारा याद करता हूँ !!
घर की बातें ..............................
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