सोमवार, 30 मई 2016

और आज फिर उसके अंदर एक इंसान की मौत हो जाती है

वो अक्सर धुएं में खो जाता है जैसे  धुएं में उसे सुकून मिलाता हो जैसे सिगरेट ही उसके सुख दुःख का साथी हो।  ......और करता भी क्या जब इंजीनियरिंग कर रहा था तो उसे लगा था नौकरी जल्दी मिल जाएगी इसलिए मन लगा के पढ़ाई करी , अपने  कॉलेज में टॉप किया पर कुछ नहीं हुआ । जिस वर्ष कैंपस होने वाला था उस वर्ष रिसेशन आ गया कोई कंपनी नहीं आई , जिनके पास जुगाड़ था उन्ही का प्लेसमेंट हुआ मतलब उन्ही को नौकरी मिली । आज पुरे एक साल हो गए थे नौकरी ढूंढते - ढूंढते , पर अब तक निराशा ही हाँथ लगी थी । बड़ी देर से इंतज़ार कर रहा था आज अपने साथ ही पढ़ने वाले एक मित्र का जिसने बोला था आज मिलने को और नौकरी के सिलसिले में कुछ बात करने को । वो  इंतज़ार कर रहा था , कभी सड़क के इस तरफ तो कभी सड़क के उस तरफ , नज़रे उठा कर दूर तक देखने की कोशिश करता फिर इधर उधर घूमने लगता । किसी का इंतज़ार , आपको बेचैन कर देती है , इसी बेचैनी को सिगरेट कम  करती है , वह इधर उधर देखता है फिर बेचैनी , जेब टटोलता है एक ही सिगरेट बची थी पीते हुए सोचने लगता है काफी देर हो गयी घर की तरफ चल पड़ता है , पर घर पहुंचने से पहले घर पर पीने  के लिए एक दो सिगरेट और ले लेना चाहता है पास की एक दूकान की तरफ बढ़ लेता है रस्ते में एक मर्गिल्ली सी भिखारिन रिरियाने लगी , ये बाबू कुछ खाये के दे दो , बहुत भूख लगा बा , दे दो बाबू जी नाही ता हम भूखे मर जाईब । वो रुक कर अपना जेब देखता है, सिर्फ एक सिगरेट के  पैसे थे उसमे , उसने सोचा अगर इसे दे दिया तो सिगरेट नहीं ले पाउँगा और फिर ये तो भिखारन है इसे कोई न कोई तो दे ही देगा । वह मुंह दूसरी तरफ करके चल देता है , भिखारिन अभी भी रिरिया रही थी । उसने अगली दूकान से सिगरेट ली और घर की बढ़ गया , नींद नहीं आ रही थी सिगरेट पीता है और सोचने लगता है कहाँ चूक हो गयी उससे जो अभी तक बेरोजगार है , सोचते सोचते उसे कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला । सुबह उठा सिगरेट नहीं थी तो उठ कर दूकान की तरफ बढ़ लिया देखा गली में काफी भीड़ लगी हुई थी उसने दुकानदार से सिगरेट मांगी और पूछा क्या हुआ , दुकानदार ने बताया एक भिखारिन मर गयी है। बीते शाम की सारी घटनाएं उसके दिमाग में कौंध जाती है फिर वही बेचैनी , वो सिगरेट का पैकेट लेता  है और घर को चल देता है । घर पहुँच कर लगातार इधर उधर टहलते हुए एक के बाद एक सिगरेट पीता है । पछतावा होता है उसे और झुंझलाता है अपने पर , एक सिगरेट की कीमत किसी की जिंदगी से ज्यादा हो गयी आज । फिर एक सिगरेट जलाता है और बैठ जाता है .. और आज फिर उसके अंदर एक इंसान की मौत हो जाती है........ 

रविवार, 29 मई 2016

वामपंथी भूत और इस भूत का इलाज


बहुत पुरानी बात है गांव में दो लोग रहते थे एक रामखेलावन और एक नरोत्तमदास । दोनों लोगो के साथ एक ही तरह की घटना हुई पर दोनों लोगो के घर पर उसका रियेक्सन अलग अलग मिला । हुआ यूँ की एक दिन रामखेलावन रात को कहीं से गांव आ रहे थे  । रास्ते में एक आम का बगीचा पड़ता था उसे सब लोग भुतहा बगीचा कहते थे पर गांव जाने के लिए उसी बगीचे से जाना था नहीं तो घूम के जाने में  एक दो घंटा ज्यादा लग जाता,  देर वैसे भी हो गयी थी तो रामखेलावन , हनुमान चालीसा पढ़ते हुए उसी बगीचे  से जाने लगे तभी उनको लगा कोई उनका पीछा कर रहा है वो पीछे मुड़ के देखे तो कोई नहीं दिखा वो फिर हनुमान चालीसा पढ़ते आगे बढ़ने लगे फिर खरखराहट की आवाज आने लगी रामखेलावन फिर रुक गए तो खरखराहट की आवाज भी आनी बंद हो गयी अब रामखेलावन की हालत खराब ।  उनका गला सूखने लगा और दिल की धड़कन तेज हो गयी वो और तेज तेज हनुमान चालीसा पढ़ने लगे और जितना तेज दौड़ सकते थे दौड़ लगा दी और घर पहुंचे और खरखराहट की आवाज उनके घर तक पीछा की जब वे धड़ाम से घर के बहार रखी खाट पर गिरे तब जा के खरखराहट की आवाज भी बंद हुयी  । डर के मारे हाँथ पांव काँप रहे थे सांसे तेज  चल रही थी पसीने पसीने  हो गए थे रामखेलावन ,तभी उनके पिताजी बहार निकले और रामखेलावन को खाट पर पड़े देख बोले , अरे रामखेलौना तू कब आया और का हुआ काहे  इतना हांफ रहा है रामखेलावन लगे चिल्लाने अरे बाबू अब जान ना  बचिहै, भूतहवा बगइचा से  आवत रहे,  घरवा तक भूत दौड़ाए  रहा अब ता जान ले के ही मानी  , उनके बाबू जी भी  डर गए । सुबह हुई गांव के लोग आये सारी बात बताई गयी तभी किसी ने देखा उनके गमछे में आम की एक लकड़ी फँसी है और उसमे कुछ पत्ते भी लगे है तब जा के पता चला की रामखेलावन जब दौड़ रहे थे तब खरखराहट की आवाज कहाँ  से आ रही थी पर तब तक देर हो चुकी थी  रामखेलावन के दिमाग में डर  घर कर गया था अब वो किसी तर्क से संतुष्ट होने वाले नहीं थे । डर के वजह से बुखार आ गया , दवा भी दी गयी गयी पर बुखार फिर चढ़ जाता ।ऐसे ही 10 -15  दिन बीत गए पर बुखार ठीक नहीं हो रहा था तब गांव में किसी बुजुर्ग ने कहा की दवा से अब रमखेलौना ठीक न होइहै इसके डर का इलाज करो  कउनो ओझा सोझा बुलाओ , पास वाले गांव में एक ओझा रहता था बुलाया गया उसने अपनी नौटंकी सुरु की रामखेलावन को नीम का धुंआ , मिर्चे का धुंआ और बीच बीच में डंडे से पिटाई लगाते हुए बोलता,  चला जा नहीं तो बोतल में बंद कर गंगा में बहा दूंगा और करीब एक घंटे तक रामखेलावन की दुर्दशा करने के बाद बोतल में धुंए को भर के बोला लो भाई भूत को हमने बोतल में बंद कर दिया है इसे गंगा जी में बहा दो दुबारा नहीं आएगा । अब रामखेलावन के डर का इलाज हो गया था और उन्हें ये विश्वाश हो गया था की अब भूत वपास नहीं आने वाला तो धीरे धीरे उनकी तबियत ठीक हो गयी । ऐसा ही खिस्सा नरोत्तमदास के साथ भी हुआ , वो भी डरे हुए थे और चिल्ला रहे थे पर जैसे ही नरोत्तमदास के पिताजी ने सुना दिए कान के नीचे दो बोले भूत उतरा या अभी भी पकड़ा हुआ है ।  नरोत्तमदास उस समय चुप हो गए पर कुछ देर बाद फिर बोले की लगता है भूतवा हमारे दिमाग पर चढ़ गया है तो उनके पिताजी फिर दिए दो कंटाप कान के नीचे , अब जब भी नरोत्तमदास भूत का जीकर करते उनकी पिटाई हो जाती । नरोत्तमदास इस घटना को भूलने में ही अपनी भलाई समझी। 

ये वामपंथी विचारधारा भी इसी भूत की तरह होती है लोगो को पता होता है की उनके गमछे में लकड़ी फँसी है पर फिर भी वो नहीं मानते भूत - भूत चिल्लाते रहते है और   जिस किसी को पकड़े उसका और साथ वालों का जीना हराम कर देती है इसलिए इसका इलाज ज़रूरी है और इलाज जितना जल्दी हो जाए अच्छा है । अब जब भी आपको कोई वामपंथी विचारधारा के भूत से ग्रसित व्यक्ति दिखे तो देखे की उसके ऊपर  उसका आसर कितना है और फिर उनका उचित इलाज करिये , विधि तो आप समझ ही गए होंगे  ....... 

शुक्रवार, 27 मई 2016

मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के दो साल


मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के दो साल हो गए । सरकार भी दो सा पुरे होने पर अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो विपक्ष नाकामियों को बता रही है । लोकल सर्किल डॉट कॉम ने एक सर्वे करवाया है , अगर इस सर्वे को मान जाये तो इसके अनुसार 46 % लोगो ने माना की सरकार अपने दो साल के काम काज में खरी उतरी है, 18 % लोगो ने इसे उम्मीद से ज्यादा बताया जबकि 36 % लोगो ने इसे उम्मीद से काम बताया है । 
सरकार के दो साल पुरे होने पर इंस्टावानी ने भी सर्वे कराया जिसमे करीब 10000 लोगो ने भाग लिया के अनुसार 68% लोगों ने माना कि 2 साल पहले के मुकाबले आज अभिव्यक्ति की आजादी ज्यादा है, वहीं भ्रष्टाचार के सवाल पर 62 % ने माना कि बीते 2 साल में भ्रष्टाचार कम हुआ है, सर्वे में 82 फीसदी ने माना कि बीते 2 साल में दुनिया में देश की छवि बेहतर हुई है। 
अगर इन सर्वे और हाल ही में हुए चुनावो के आधार पर बात कही जाए तो निश्चित रूप से नतीजे सरकार के पक्ष में ही जायेंगे और मोदी जी का दो साल का कार्य-काल संतोषजनक ही कहलायेगा । स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं से एक नयी आशा जगी है  और इस तरह की योजनाओं में रोजगार की सम्भावनाएं भी दिखती है जिससे और युवाओं में एक जोश  आया है।  जनधन योजना , मुद्रा बैंक , प्रधानमंत्री फसल विमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार और स्वच्छता अभियान आदि एक अच्छी शुरुआत है । 

विदेश निति के तहत पकिस्तान जैसे हमारे पडोसी देश से हमारे सम्बन्ध भले ही अच्छे न हो पाये हो पर पकिस्तान को रक्षात्मक की मुद्रा अख्तियार करने पर विवश तो कर ही दिया है । अमेरीका, जर्मनी, फ्रांस, जापान तथा आस्ट्रेलिया  जैसे देशो से नजदीकियां बढ़ा कर विश्व में भारत की छवि में सुधार किया है । 

वामपंथियों द्वारा की जा रही सभी नौटंकियों जैसे , असहिष्णुता , सेलेक्टिव मुद्दे पर अवार्ड वापसी , गोमांस का मुद्दा, गोहत्या पर बैन , अखलाख की हत्या , जे एन यू प्रकरण ,  रोहित वेमुल्ला की लाश पर राजनीती  जैसे मुद्दों पर सही निर्णय लेते हुए सबका साथ सबका विकास पर ध्यान देते हुए दो साल पुरे किये । 

रेलवे में पहले से काफी सुधार हुआ और पटरियों को बिछाने की गति पहले से काफी तेज हुई है। सड़कों की भी स्थिति पहले से काफी बेहतर हुयी है । बीएसएनएल और एयर इंडिया पिछले दस सालो में पहली बार फायदे में है, और सबसे बड़ी बात अभी दो साल में मोदी सरकार भ्रस्टाचार मुक्त सरकार है । 

असम में जीत और दो साल पुरे होने पर बी जे पी और मोदी जी को बधाई। 


सोमवार, 23 मई 2016

भारत के खाते में एक और सफलता



भारत के खाते में एक और सफलता, पहला मेड इन इंडिया स्पेस शटल लॉन्च ......
भारत ने आज सोमवार को अपना पहला स्पेस शटल लॉन्च कर दिया. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की ये लॉन्चिंग ऐतिहासिक है क्योंकि यह फिर से इस्तेमाल किया जा सकनेवाला शटल पूरी तरह भारत में बना है. इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 7 बजे लॉन्च किया गया. अभी ऐसे रियूजेबल स्पेस शटल बनाने वालों के क्लब में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान ही हैं.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रवक्ता ने आरएलवी-टीडी एचईएक्स-1 के सुबह सात बजे उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद कहा, ‘अभियान सफलतापूर्वक पूरा किया गया।’ यह पहली बार है, जब इसरो ने पंखों से युक्त किसी यान का प्रक्षेपण किया है। यह यान बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर उतरा। हाइपरसोनिक उड़ान प्रयोग कहलाने वाले इस प्रयोग में उड़ान से लेकर वापस पानी में उतरने तक में लगभग 10 मिनट का समय लगा। आरएलवी-टीडी पुन: प्रयोग किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान का छोटा प्रारूप है।


बुद्धा इन ट्रैफिक जैम (Buddha in a Traffic Jam)


बुद्धा इन ट्रैफिक जैम  एक शानदार फिल्म है । विवेक अग्निहोत्री जिन्होंने अपने पहली फिल्म चॉकलेट डायरेक्ट की थी और जो ज्यादातर कमर्सिअल सिनेमा ही बनते है इस बार एक ऐसी फिल्म के साथ आये है जो आदर्शवाद , समाजवाद, नक्सलवाद , भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर आपको सोचने पर मजबूर करती है । इस सिनेमा में यह दिखाया गया है की पिछले 60 सालो से आदिवासियों के हालात में कोई बदलाव कैसे नहीं हुआ । कैसे ये लाल सलाम वाले हर जगह फैले हुए है। इस फ़िल्म में अलग अलग " वाद " पर भी चर्चा की गयी है जिसके बारे में हम सोचते है की यह हमारे देश के लिए सही है । पिछले कुछ महीनो से चल रही बहस जैसे की "राष्ट्रवाद" या "कट्टरपंथ" जैसे मुद्दों पर भी बहस की गयी है । हालाँकि यह फ़िल्म बहुत अच्छी बनी है और आपको बहुत सारे मुद्दों पर सोचने पर मजबूर करती है पर शायद यह सबको पसंद ना आये क्योंकि इसमें कोई आइटम सांग नहीं है , कोई धांसू एक्शन या चटपटे डायलॉग नहीं है , फिर भी मेरे हिसाब से यह फ़िल्म एक बार ज़रूर देखनी चाहिए ।  मुझे बहुत पसंद आई , शायद आपको भी अच्छी लगे...    
 


रविवार, 22 मई 2016

आपका आदर्श कौन ? टीना डाबी या कुलदीप द्विवेदी.......



टीना डाबी ने टाप किया है जबकी कुलदीप द्विवेदी कि रैंक 242 है , तो क्या यह सही है कि पहली रैंक कि तुलना 242वें रैंक से कि जाये पर आर्थिक स्थिति देखने पर यह तुलना जरूरी हो जाती है ।
टीना के पिताजी जनरल मैनेजर है बी एस एन एल मे और उनकी मॉ भी आई ई एस है जबकि कुलदीप के पिताजी लखनउ विश्वविद्धालय मे गार्ड कि नौकरी करते है । टीना के पिताजी ने रिजर्वेशन का फायदा उठाते हुये दिल्ली इन्जिनियरिन्ग कॉलेज से बी.टेक किया , फिर रिजर्वेशन का फायदा उठाते हुये टेलिकॉम डिपार्टमेन्ट मे नौकरी ली और फिर शायद रिजर्वेशन का फायदा उठाते हुये प्रमोशन भी लिया । इनका मॉ ने भी रिजर्वेशन का फायदा उठाते हुये सरकारी नौकरी ली ।हमारे संविधान के हिसाब से उन्होने कुछ भी गलत नही किया । 
टीना के माता -पिता दोनो बहुत पढ़ने लिख हैे और अच्छा कमाते है ।
अब आते हैं कुलदीप द्विवेदी पर , इनके पिताजी एक गार्ड कि नौकरी करते है। कुल 8000 कमाते है इसलिये गरीबी रेखा से नीचे भी नही है । सवर्ण है इसलिये अन्य लाभ भी इनके लिये नहीं है । कुलदीप द्विवेदी के मार्क्स ,टीना डाबी से कही ज्यादा है प्री इक्जाम मे , मेन्स का मुझे पता नही , पर जैसा कि बताया जा रहा टीना डाबी ने बहुत अच्छा किया था मेन्स मे पर अगर वह रिजर्वेशन का फायदा नहीं उठाती तो शायद अंकित कि तरह मेन्स लिख भी नही पाती । वो आई ए एस जरूर बनती पर शायद इस बार नहीं। 
मुझे टीना डाबी के लिये खुशी है पर साथ मे अंकित जैसे लोगो के लिये दुख भी है । 
जात आधारित रिजर्वेशन का मै इसी लिये बिरोध करता हूं । कुछ लोग तर्क देते है कि हमारे पुर्वजो ने इनपर बहुत जुल्म किया था , हालांकि मै यह मानने को तैयार नही हुं क्योकी जितना मैने पढ़ा है उससे तो यही लगता है कि पहले जो योग्य होता था वही शासन करता था पर अगर एक बार इनकि बात मान भी लि जाये तो ये कहॉ का न्याय है कि दीदा परदादाओ के अपराधो कि सजा बेटो को दी जाये , ऐसा तो हमारा संविधान भी नही कहता । 
 बदले कि भावना मन से निकाल दिजीये ,अपने आपको दलित , नीच कहना बन्द किजीये क्योकि प्रकृति का सिद्धान्त है दो जैसा सोचता है वैसा हो जाता है और ऐसा सोचते हुये टाप करके भी किसी के लिये आदर्श नही बन पायेंगे जबकि लोग आपसे बहुत पीछे होने के बावजूद लोगो के आदर्श बनेगे। मेरे लिये तो कुलदीप द्विवेदी हम सबका आदर्श होना चाहीये , आप के लिये आप चुनिये ।।।।।।।।।।

शनिवार, 21 मई 2016

मोदी के वादे और अटल इरादे के बीच अरहर की दाल


कुछ कहने से पहले  कुछ आंकड़े  
1 - मोदी सरकार ने पिछले दो साल में 50 हजार करोड़ की टैक्स चोरी पकड़ी है.
2 - 21 हजार करोड़ की अघोषित आय का खुलासा हुआ है
3 - पिछले दो साल में 3,963 करोड़ रुपए की कीमत का तस्करी का सामान जब्त किया गया है
4 - 1466 मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू हुई
पर ये सब आपको नहीं दिखेगा , आपको तो बस दाल ही दिखाई देती है ।  दाल 170 रुपए किलो हो गयी है इसलिए हमें तो जी दाल ही खानी है , जब प्याज महँगी थी तो हमें बस प्याज ही खानी थी मतलब की जब जो चीज महँगी होगी हमें तो वही खानी है , क्योंकि हम आम आदमी है जी और ऊपर से हमें वामपंथी कीड़े ने काट रखा है ।  हम बुध्दिजीवी लोग है जी हम 10 रुपये किलो आलू , 10 रुपये किलो प्याज , 15 रुपये किलो टमाटर या 20 - 30 रुपये किलो की सब्जी कैसे खा सकते है जी आखिर हम आप आदमी है हम खाएंगे तो 170 रुपये किलो अरहर की दाल ही खाएंगे जी हम और दाल तो छु भी नहीं सकते जी वो तो सस्ती है जी । एक बार बनारस घाट पर सीढ़ियों पर बैठा था , वहीँ पास में कोई विदेशी भी बैठा था हम लोगो के बीच बात चीत शुरू हुई , मुझे अभी याद नहीं की वो किस देश से आया था पर उसका प्रश्न अभी भी याद है  थोड़ी देर बाद उसने मुझसे पुछा In India , food is everywhere and best part of it that it is almost free but still people are starving why? You know in our country we can not do farming for at least 6 months ...  इसका कोई क्या जवाब दे जब अपने लोग ही अपनी नाव डुबोने में लगे हो तो ... 

जब मंगलयान छोड़ा जाता है तो तुम चिल्ला चिल्ला के घर भर दिए थे की इतना खर्च कर दिया इतने में कितने गरीबो को कहना मिल जाता , पर जब वही आपके स्वघोषित इकलौते ईमानदार नेता श्री केजरीवाल ने 500 करोड़ से ज्यादा खर्च किया तो आपके मुंह में छाले पड़ गए थे । ऐसे बहुत सी घटनाएं है जिनसे आपका दोगलापन दिखता है |
अब तो जैसे तुम्हारा सवाल सेलेक्टिव होगा , हमारा जवाब भी वैसे ही सेलेक्टिव होगा ,तुम्हारी दाल अब नहीं गलने वाली , अब तुम अपनी छाती कूटो या करो विधवा विलाप किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । 


गुरुवार, 19 मई 2016

चुनाव 2016

 
चुनाव के परिणाम आ चुके है और ये परिणाम देख कर तो यही लगता है की जिस भी पार्टी को कांग्रेस ने छू भी दिया है वो हार गयी है ..मतलब जनता पुरे देश में कांग्रेस को  नकार रही है यानि कांग्रेस का सफाया जारी है । वामपंथी भी खुद अपने लाल दुर्ग में हार गए मेरा मतलब दुबारा हार गए । केरल में वामपंथियों की जीत कोई अजूबा नहीं है , एक तो वहां हर 5 साल बाद सरकार बदलने की परंपरा रही है  और दूसरे वहां जनता के पास कोई तीसरा विकल्प भी नहीं था जैसा की पश्चिम बंगाल में था जहां ममता दीदी की पार्टी ने दुबारा जीत दर्ज की । हालाँकि बी जे पी के लिए आसाम में जीत के बाद अच्छी खबर यह भी है की वो पश्चिम बंगाल और केरल में भी सेंध लगाने में कामयाब रही है हालाँकि पश्चिम बंगाल में वोट शेयर 16 प्रतिशत से कम होकर 11 प्रतिशत ही रह गया है फिर भी बी जे पी के लिए अच्छी खबर है पर इन्हें इस जीत से  फूल के कुप्पा नहीं होना चाहिए । तमिलनाडु में जयललिता दुबारा चुनी गयी उसका सिर्फ एक कारन  है की बिपक्ष की पार्टी को कांग्रेस ने छु लिया था ।
जहां जहां भी जनता को वामपंथि और कांग्रेस के अलावा कोई तीसरा विकल्प मिला उसने उसी को चुन लिया । जनता जानती है की कांग्रेस एक ऐसे व्यक्ति को हम पर थोपना चाहती है  जिसे विकास का व भी नहीं आता यह पार्टी परिवार वाद से बाहर नहीं आएगी और वामपंथियों की नौटंकियों से जनता परेशान हो चुकी है कभी दादरी , कभी असहिष्णुता तो कभी जे एन यू । केरल में वामपंथियों की जीत को मैं  उनके लिए सांत्वना भी नहीं मनाता ।
बी जे पी ने स्थानीय  नेतृत्व पर भरोसा किया और स्थानीय मुद्दे उछाल आसाम में जीत हासिल की जिसमे आर एस एस  की भूमिका अहम थी जो पिछले तीन दशक से आसाम में कमल खिलाने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास कर रही थी । हालाँकि इस जीत से बी जे पी को अति उत्साही नहीं होना चाहिए क्योंकि 2 साल के बाद भी लोग अच्छे दिनों का इंतज़ार कर रहे है ।




अंग्रेजी से हारती हिंदी



UPSC का रिजल्ट देखा और तब पता चला अपनी भाषा हिंदी की दुर्दशा 1000 में से केवल 24 हिंदी भाषी ही सेलेक्ट हुए क्यों? 2010 से पहले तो ऐसा नहीं था  ऐसा लगता है जैसे UPSC  ने तय कर रखा है की हिंदी भाषी या अन्य भाषाओं के छात्रों को लेना ही नहीं है। .. वैसे तो संविधान द्वारा हिंदी को राष्ट्रभाषा व राजकाज की भाषा का दर्जा दिए जाने के संकल्प के बावजूद हिंदी को आज तक उसका उचित स्थान नहीं मिल पाया है, उस पर हिंदी को भीतर खाते पीछे धकेलने की कोशिश उससे जुड़े संकल्प से मेल नहीं खाती।

हिन्दी की मौजूदा स्थिति के लिए प्रशासन भी कम दोषी नहीं है। संसद से लेकर निम्न पदों तक सभी कार्य अंग्रेजी भाषा में किये जाते हैं। क्या संसद में हिन्दी भाषा में काम-काज नहीं किया  जा सकता? तर्क दिया जाता है कि सभी लोग हिन्दी नहीं जानते। क्या कभी उनसे पूछा गया है कि सभी लोग अंग्रेजी भी नहीं जानते।

भारत एक ऐसा देश है जो स्वयं अपनी राष्ट्र भाषा से नज़रे चुराता है |  आज अंग्रेजी माध्यम के स्कूल लोकप्रिय हो रहे हैं। हमारे बच्चों को हिन्दी में गिनती भी नहीं आती। क्या यह हमारे लिए शर्मनाक बात नहीं है? दरअसल हम भ्रम का शिकार है कि अंग्रेजी अकेली अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है जो पूरी दुनिया में समझी व बोली जाती है। सच्चाई यह है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में छह भाषायें चलती हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी, रूसी, चीनी, और अरबी । अंग्रेजी के बिना ही जापान ने जबरदस्त उन्नति की है। उसके इलैक्ट्रोनिक सामान व उपकरण बनाने में विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त देश है जिसके माल की खपत हर जगह है। यही दशा चीन की भी है, जो आज सारी दुनिया के बाजारों पर कब्जा जमा रहा है। अनेक देशों जिनमें लीबिया, ईराक व बांग्लादेश शामिल है ने एक झटके में अंग्रेजी को निकाल बाहर कर दिया।
 
आजादी के इतने वर्ष हो गये, हिंदी में सारे काम हों, यह हम सुनिश्चित नहीं कर पाये. न्यायालय में सारे काम आज भी अंगरेजी में होते हैं. वादी को अपने केस में संबंध में कुछ पता नहीं चल पाता. हम ज़ोर- शोर से हिंदी दिवस मानते हैं. मानो  हिंदी मृत हो गयी है. देश में राजभाषा के साथ ऐसा व्यवहार हमें मुंह चिढ़ाता प्रतीत होता है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार की हिंदी के प्रति निष्ठा को देखते हुए उसे इस पर सहानुभूति से पुनर्विचार करना चाहिए।

सोमवार, 16 मई 2016

कहावतों और मुहाबरो को एक अलग नज़रिए से देखने की ज़रुरत




आज एक अजीब बात हुई | कभी कभी कुछ ऐसा घट जाता है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देता है | मैं जहाँ रहता हूँ वह पर एक दीदी रहती है उनकी लड़की कभी कभी मुझसे पढ़ने के लिए आती है कभी कभी कंप्यूटर या फिर हिंदी | मैं भी अपना ज्ञान बाट कर खुश हो जाता हूँ पर इस बार मैं चुप हो गया मेरे पास कोई  जवाब नहीं था उसके सवाल का, और मैं सोचने लगा शायद पुरानी कहावतों और मुहाबरो को एक अलग नज़रिए से देखने की ज़रुरत है | मैं थोडा कन्फ्यूज़  हूँ  शायद आप लोग मदद कर सके | हुआ यूँ की आज बिटिया आई और बोली कबीर का दोहा समझा दीजिये | मैंने कहा ठीक है दोहा बोलो 

दोहा : निंदक नियरे रखिये , आँगन कुटी छवाए ,
          बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे सुभाए |

मैंने उसे अपना ज्ञान बांटा या कहिये अर्थ समझाया 
" जो ब्यक्ति तुम्हारी आलोचना या बुराई करता है उसको हमेशा अपने पास रखना चाहिए , हो सके तो उसे अपने घर के आँगन में एक कुटिया बनाकर रहने दे , क्योंकि ऐसे ब्यक्ति हमें हमारे दोषों से परिचित करते हैं और इसी बहाने हमें सुधारने का अवसर प्रदान करते हैं | वास्तव में ये लोग हमें बिना साबुन और पानी के निर्मल करते हैं , क्योंकि साबुन और पानी तो केवल शारीर की गन्दगी को साफ़ करते हैं पर ये लोग हमारे अंतर्मन को निर्मल करते हैं |"

यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था पर इसके बाद जो वो बोली मेरे पास कोई उत्तर नहीं था उसने कहा की "ये तो गलत बात है , अगर हम उसको अपने घर में कुटिया बनाकर रहने देंगे तो वो इसको हमारा एहसान मानेगा और एहसान से दबने के बाद तो वो खुद ही निंदा करना भूल जायेगा "

जिस तरह से उसने कहा मेरे पास तत्काल कोई जवाब नहीं सुझा बस ये ही बोल पाया की ये सब परीक्षा में मत लिख देना नहीं तो जीरो मिलेगा | नंबर पाना है तो जितना बोला है उतना लिखो |

अब हमारे पास तो अभी तक कोई जवाब नहीं है शायद आप लोग हमारी कुछ मदद कर सकें ..............................

रविवार, 15 मई 2016

जिंदगी और सिगरेट



शायद जिन्हें कभी नही मिलना होता है वो जाने से पहले हुमारे दिल में सदा के लिए बस जया करते हैं | जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर मिलते हैं और फिर बिछड़ जाते है कभी नही मिलने के लिए | चन्द मिनटों की मुलाकात में ही ये अपना काम बखूबी कर जाते हैं, फिर ना हम कभी इनका इंतजार करतें हैं और ना ही मिलने की इच्छा होती है और ना ही इनके जाने का दूख: बस मिल जाते है किसी मोड़ पर एक खूबसूरत याद की तरह | ऐसे लोग कभी बिछड़ते नहीं ...वे केवल मिलते हैं ...
ऐसे ही मिली थी वो एक दिन अचानक ! उसने कहा था सिगरेट क्यों पीते हो , इससे चेहरा मुरझा जाता है , देखते नही इसके पॅकेट पर भी लिखा है " सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है " , मैं ज़ोर से हंस पड़ा था | उसने पूछा था "इसमे हँसने वाली क्या बात है" मैंने कहा देखो हँसने से चेहरे पर चमक वापस आ जाती है और लिखने से कुछ नही होता जैसे अगर इंसान के शरीर पर ये गूदवा दिया जाए की " ये शरीर नश्वर है, मृत्यु अटल है , एक दिन सबको मरना है" तो क्या लोग जीना छोड़ देंगे, नहीं वो जियेंगे ठीक मेरी तरह जैसे में सिगरेट पी रहा हूँ वैधानिक चेतावनी के बावज़ूद | जब तक सिगरेट थी तब तक दोस्ती , सिगरेट के अंतिम छोर तक आते दोस्ती अलविदा हो ली , वो अपने रास्ते और मैं फिर अपने तन्हाईओं के साथ जिंदगी के उलझे सिरों को सुलझाने में लग गया और जो सिरा ना सुलझता दिखाई दे उसे बस धुएें में उड़ाने लगा | धुआँ जिंदगी के जैसा ही तो होता है ना काला ना सफेद , उड़ता रहता है हवा में टेढ़े मेढ़े पर उपर की ओर , ज़मीन पर नहीं टिकता ठीक जिंदगी की तरह...........

शनिवार, 14 मई 2016

हाँ मैं ब्राह्मण हूँ और यही मेरा पाप है




हाँ मैं ब्राह्मण हूँ और यही मेरा पाप है जो मुझे मेरे ही देश में अपनों से लड़ने के लिए उकसा रहा है । हाँ मैं अब नफ़रत करता हूँ नीची जाती के लोगो से । पहले से मैं ऐसा नहीं था मेरे कई मित्र नीची जाती से थे और हैं भी , पर अब पहले जैसी आत्मीयता नहीं रही जब मैं ये देखता हूँ की आरक्षण की सीढी पर चढ़कर कैसे मुह चिढाते हैं और सहानुभूति का बहाना करके जले पर नमक लगाते हैं की जैसे वो कह रहे हो की तुमने जो ब्राह्मण के घर पर पैदा होके पाप किया है उसकी सजा तो तुम्हें मिलेगी ही ।
जिन मित्रों के साथ मैं घंटो बैठने में कोई परेशानी नहीं होती थी आज उन्हें देखते ही मन खिन्न हो जाता है । कहते हैं सभी जाती के लोग बराबर है पर मैं कैसे मान लूं ........

मुझे गैर सरकारी संस्थान में पढ़ना पड़ा जबकि मुझसे कहीं कम योग्यता रखने वाले मेरे साथी कहीं अच्छे संस्थानों में गए यहीं से सुरु हुई आरक्षण से लड़ाई और ये लड़ाई आगे चलकर नफ़रत में बदली । मेरे देश में हर जगह आरक्षण है बस में आरक्षण , पढ़ने में आरक्षण , नौकरी में आरक्षण , प्रमोशन में आरक्षण हर तरफ जहाँ आप की नज़र पड़े वही आरक्षण । अब तो साँस लेना भी मुश्किल होने लगा है 
बचपन से आरक्षण की गुलामी सहते आया हूँ और अब मैं डरने लगा हूँ की कहीं ये नफरत मुझे मेरे ही लोगो की जान की दुश्मन न बना दे । 

कुछ लोग कहते हैं की हमारे पुर्वजो ने बड़े जुल्म किये है हो सकता है आप लोग सच कह रहे हो पर ये कहाँ का न्याय है की बाप अगर मर्डर करे तो फांसी बेटे को दे दी जाए ।

आरक्षण उन्ही को मिलता है जो नीची जाती के है यानी हम आप उनके मन में ये भर रहे हैं की वे नीच हैं दलित है सताए हुए हैं बेचारे हैं और हम आप ये कहते हैं की हम आरक्षण दे के उनकी मदद कर रहे है  लानत है हमारी सोच पर ...........

मैं आरक्षण का बिरोध करता रहा हूँ और आगे भी करता रहूँगा इसलिए नहीं की मैं ब्राह्मण हूँ बल्कि इसलिए की योग्यताओं को प्रोत्साहन मिलाना चाहिए न की जाती विशेष को । 


प्रभु मुझे शक्ति देना ..............................


Source : What's APP
Pic : Google

इंडिया कभी सेक्युलर नहीं था........




भारत एक अजीब देश है , कहते है यह एक सेक्युलर देश है मतलब हिन्दू लॉ या शरिया कई कोई असर देश के कानून  पर नहीं पड़ना चाहिए , सबके लिए एक सामान कानून होना चाहिए जो धर्म आधारित नहीं हो  पर ...... यहां दो अलग कानून है , मुसलमान चार चार शादिया कर सकता है पर हिन्दू दूसरी करे तो उसे जेल में डाल दिया जायेगा जबकि एक से ज्यादा शादी दोनों के लिया अवैध होना चाहिए , ये एक ऐसा देश है जहां मेजोरिटी को नेता हमेशा से इग्नोर करते आये है पर माइनॉरिटी को खुश करने के लिए किसी भी हद तक गए है  , उदहारण के लिए आप शाहबानो केस ले सकते है, शाहबानो केस में जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला सही ठहराया तब तात्कालिक सरकार ने जमा मस्जिद के सही इमाम के अनुरुप संविधान बदल दिया |
कशमीरी पंडितो पर क्या कोई बहस इस कांग्रेस सरकार ने आज तक की ? क्या उत्तर प्रदेश में धर्म आधारित आरक्षण और कैश स्कीम नहीं है ?
हिन्दू तीर्थ यात्री रोड टैक्स देते है पर मुस्लिमो को हज सब्सिडी दी जाती है क्यों?
ऐसे कई उदहारण है फिर भी कहते है भारत सेक्युलर देश है | मगर कैसे ये कम से कम मुझे तो समझ नहीं आता |
  | सभी जानते है की हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन बड़ी संख्या में किया जाता रहा है पर हमारी सरकार और भांड मीडया को  केवल घर-वापसी ही दिखाई देता है | यदि धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता की मांग मिडिया और सरकार द्वारा की जा रही है तो हिन्दू अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए स्वतंत्र क्यों नहीं होना चाहिए ?

गुजरात के दंगो की बात सभी करते है पर गोधरा में ट्रेन के एक डिब्बे में बैठे लोगो को जिन्दा जला देने की घटना पर कोई बात नहीं करते |

इंडिया कभी सेक्युलर नहीं था क्योंकि जो देश धर्म के आधार पर ही बन हो वो सेक्युलर कैसे हो सकता है ...... भारत हो सकता था पर उसके तो सेक्युलर लोगो ने टुकड़े कर दिए |


बुधवार, 4 मई 2016

सब संघी पापी होते है ......



आजकल संघी होना पाप हो गया है । किसी विचारधारा से जुड़ना या उसे मानना मेरा अपना निजी फैसला है पर मिडीया मे संघी मतलब पापी है हो गया है ।पर कुछ भी कहिये ,  संघ आज भी विश्व का सबसे बड़ा संगठन है जो लोगो कि सेवा निष्काम भाव से कर रहा है पर नक्सलियो द्वारा जब हमारे सैनिक मारे जाते है ये चिरकुट वामपंथी जश्न मनाते है तब यही  मिडीया इन्हे बुद्धिजीवी बताती है।
 सच तो यह है कि देश में आज एक अजीब सी नौटंकी चल रही है. साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लोगों का जम कर बेवकूफ बनाया जा रहा है। वास्तव में यह सोचने की बात है कि हमें हमारे देश में रहने के लिए वो भाषा बोलनी पड़ती है जो तथाकथित धर्मनिर्पेक्षता की भाषा है... आज 67 वर्षों के बाद इस देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेकीं जा रही हैं...चलिए मान लेते हैं कि मुसलमान देश में अल्पसंख्यक हैं...लेकिन इसी देश में कश्मीर एक ऐसी जगह है जहां हिन्दू अल्पसंख्यक था...जब उसको कश्मीर से निकाला जा रहा था तो किसी बुद्धिजीवी ने इस बारे में तो आवाज नही उठाई...आज वो हिन्दू कहां है किस हाल में हैं क्या किसी की जानने की इच्छा होती है...पता नही. घर में किसी भी बच्चे को क्या आप घर की कीमत पर मनमानी करने देते हैं...बात संख्या की नही है... समानता की होनी चाहिए... किसी भी तरह से किसी को भी अगर आप छूट देते हैं तो मान कर चलिए कभी भी दूरियां समाप्त नही होंगी. वोट बैंक के चलते नेताओ ने देश को छोटे छोटे टुकड़ों में बांट रखा है...कोई तो ऐसा प्रयास करे की ये संख्या की गिनती बंद हो...अब तो जाति के आधार पर जनगणना होनी की बात करने लगे हैं ये लोग.... क्या ये समाज को एक बार फिर तोड़ने की साजिश नही की जा रही है... गांधी की भी ज़रूरत है इस देश को...सावरकर की भी... कहीं ऐसा न हो गांधी के नाम पर राजनीति कर रहे लोग देश के गौरवशाली इतिहास से जुड़े अन्य लोगों के बलिदान को धीरे धीरे इतिहास के पन्नों से मिटा दे...कंग्रेसी चाहते हैं कि नेहरू और गांधी नाम से इतनी योजनाएं चलाई जाएं और इतनी जगहों के नाम उन पर रखे जाएं कि अगले युग में जब इतिहास जानने के लिए खुदाई हो तो उन्हीं के नाम के स्मारक निकलें। और तब यह शोध का विषय बने कि पता करो इन गांधी और नेहरू राजवंशों का साम्राज्य कहां तक था। इस देश के बुद्धिजीवियों पर मुझे तरस आता है कि उनकी कलम केवल आरएसएस के खिलाफ ही आग उगलती है। क्या राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से बड़े या समकक्ष महापुरुष इस देश में हुए ही नहीं क्या? क्या गांधी परिवार का त्याग भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव से भी बड़ा था?

अब एक नजर संघ की तरफ डालें। चूंकि संघ छपास का शौकीन नहीं है, इसलिए वह अपनी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार नहीं करता। इसी का फायदा उठाकर कांग्रेसी नेता संघ के बारे में गलत प्रचार करते रहते हैं। आपकी तरह मैंने भी कभी संघ की विधिवत सदस्यता नहीं ली और न ही कोई शाखा में उपस्थित रहा, लेकिन संघ के कुछ कार्यक्रमों के कवरेज के दौरान उसकी शिक्षा से रूबरू हुआ हूं। संघ अपनी शाखा में स्वयंसेवकों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सारा कार्य अपने हाथ से करना सिखाता है। वह भारतीय संस्कृति को अपनाने की सीख देता है। इसलिए कांग्रेसियों को बुरा लगता है, क्योंकि कांग्रेसी तो शुरू से ही विदेशियों के चम्मच रहे हैं और आज भी विदेशी की ही गुलामी कर रहे हैं।
कहने को कांग्रेस देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है, लेकिन उसमें राष्ट्रीय नेतृत्व लायक एक भी नेता नहीं है। वह तो आतंकवादियों को फांसी से बचाना ही अपना मूल धर्म मानती है।

सोमवार, 2 मई 2016

बरसों के बाद उसी सूने आँगन में - धर्मवीर भारती




बरसों के बाद उसी सूने आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना
रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन का कोना-कोना

कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना
फिर आकर बाँहों में खो जाना
अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी
फिर गहरा सन्नाटा हो जाना
दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना,
कँपना, बेबस हो गिर जाना

रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन को कोना-कोना
बरसों के बाद उसी सूने से आंगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना !

अनूठी बातें -- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’



जो बहुत बनते हैं उनके पास से,
चाह होती है कि कैसे टलें।
जो मिलें जी खोलकर उनके यहाँ
चाहता है कि सर के बल चलें॥
और की खोट देखती बेला,
टकटकी लोग बाँध लेते हैं।
पर कसर देखते समय अपनी,
बेतरह आँख मूँद लेते हैं॥

तुम भली चाल सीख लो चलना,
और भलाई करो भले जो हो।
धूल में मत बटा करो रस्सी,
आँख में धूल ड़ालते क्यों हो॥

सध सकेगा काम तब कैसे भला,
हम करेंगे साधने में जब कसर?
काम आयेंगी नहीं चालाकियाँ
जब करेंगे काम आँखें बंद कर॥

खिल उठें देख चापलूसों को,
देख बेलौस को कुढे आँखें।
क्या भला हम बिगड़ न जायेंगे,
जब हमारी बिगड़ गयी आँखें॥

तब टले तो हम कहीं से क्या टले,
डाँट बतलाकर अगर टाला गया।
तो लगेगी हाँथ मलने आबरू
हाँथ गरदन पर अगर ड़ाला गया॥

है सदा काम ढंग से निकला
काम बेढंगापन न देगा कर।
चाह रख कर किसी भलाई की।
क्यों भला हो सवार गर्दन पर॥

बेहयाई, बहक, बनावट नें,
कस किसे नहीं दिया शिकंजे में।
हित-ललक से भरी लगावट ने,
कर लिया है किसी ने पंजे में॥

फल बहुत ही दूर छाया कुछ नहीं
क्यों भला हम इस तरह के ताड़ हों?
आदमी हों और हों हित से भरे,
क्यों न मूठी भर हमारे हाड़ हों॥

रविवार, 1 मई 2016

कहै कबीर सुनौ ये भोला...............





सेन्टर फॉर मीडिया स्टडीज के सर्वे के अनुसार इस देश मे 70% लोगो का मानना है कि मोदी को अगले 5 सालों के लिये और प्रधानमंत्री रहना चाहीये और इन्हे दुसरी बार चुना जाना चाहिये। यह सर्वे तब आया है जब  ये प्रचारित किया जा रहा था कि मोदी जी कि लोकप्रियता कम हो रही है , जबकि सच ये है कि 62% लोग मोदी जी के काम से संतुष्ट है और 70% लोग उन्हे दुबारा प्रधानमंत्री देखना चाहते है।

हालाकि कुछ लोगो का ये भी मानना है कि मोदी जी  ने अपने वादो को पुरा नही किया और स्थिति और खराब हुयी है।

अपने दत्तक पुत्रों द्वारा मोदी जी कि छवि खराब करने मे लगे आपियों, वामियो खॉग्रेसियो के लिये यह बुरी खबर है । कुछ तो बेचारे 2002 से ही लगे हैं । इन लोगो ने मोदी जी को हत्यारा तक बोला, अवार्ड वापसी गैंग ने असहिस्णुता कि नौटंकी चलायी , अखलॉक और रोहित वेमुल्ला के मृत शरीर पर भी राजनीति करने से बाज नही आये , इशरत को अपनी बेटी बना कर सड़को पर बैठ अपनी छाती कूटी , और अब आजकल कॉम-रेड कन्हैया के कन्धे से बन्दूक चला रहे हैं । ये कथित बुद्धिजीवी इतना भी नहीं समझते कि शेर पर कुत्तो के भौकने से कोइ फर्क नहीं पड़ता । हमारी तरफ एक कहावत है " कहै कबीर सुनौ ये भोला, कुतिया के त पिल्ला हि होला...." तो चाहे जितनी कोशिश कर लिजिये जनाब कुछ नही होगा........

मोदी जी देश की नब्ज पहचानते है । 17-18 घन्टे काम करने वाला देश का यह सेवक , भारत को विश्व गुरू बनाकर ही रूकेगा ऐसा मेरा विश्वास है ।


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