रविवार, 23 अक्तूबर 2011

इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले


इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेके, तब प्राण तन से निकले,

श्री गंगाजी का तट हो, जमुना का वंशीवट हो,
मेरा सावला निकट हो, जब प्राण तन से निकले

पीताम्बरी कसी हो, छबी मान में यह बसी हो,
होठो पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले

जब कंठ प्राण आये, कोई रोग ना सताये
यम् दरश ना दिखाए, जब प्राण तन से निकले

उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,
राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले,

एक भक्त की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी

आगे तुम्हारी मर्जी जब प्राण तन से निकले


इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

हर शाम को जब मैं तनहा रहता हूँ ,क्या जानिये खुद से मैं क्या कहता रहता हूँ

हर शाम को जब मैं तनहा रहता हूँ ,क्या जानिये खुद से मैं क्या कहता रहता हूँ .................

शायद मैं अकेले में तेरे अक्स से मिलता हूँ,
मिलकर तेरे अक्स से मैं फिर बातिएँ करता हूँ,
बातों में यादों के मैं मोती चुनता हूँ ,
यादों के मोती से मैं फिर माला बुनता हूँ
माले से फिर तेरा मैं श्रृंगार करता हूँ
शायद मैं अकेले में तेरे अक्स से मिलता हूँ .............

तुमको ये खबर है की मुझे नींद नहीं आती ,
गर साथ ना हो तुम तो , युहीं रात गुजर जाती ,
इसलिए अक्स बनकर तुम पास चली आती हो ,
लेकर आगोश में अपने कहीं दूर चली जाती हो ,
मैं पाकर साथ तुम्हारा चैन से सोता हूँ ,
शायद मैं अकेले में तेरे अक्स से मिलता हूँ .........

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