रविवार, 9 मई 2010

कुछ बीती बिस्म्रित बातें

मानस सागर के तट पर ,
ये तेज लहर की घातें |
कल कल ध्वनि से हैं कहती,
कुछ बीती बिस्म्रित बातें |

मधुमय मादक मुस्कान लिए ,
जब पहले देखा तुमको |
जन्मो का है साथ तुम्हारा,
ये लगा उसी क्षण मुझको |

मैं अपलक इन नयनो से ,
देखा करता उस छवि को |
जैसे सूर्यमुखी का पौधा,
देखा करता है रवि को |

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