स्नेह निर्झर बह गया है
रेत ज्यों तन रह गया है
आम की यह डाल जो सूखी दिखी
कह रही है- "अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-"
जीवन दह गया है।
दिए हैं मैंने जगत को फूल फल
किया है अपनी प्रभा से चकित चल
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल
ठाठ जीवन का वही
जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा
श्याम तृण पर बैठने को निरूपमा
बह रही है हृदय पर केवल अमा
मैं अलक्षित हूँ यही
कवि कह गया है।
Nirala ji kee sundar kavita padhwane ke saath hi sundar pyari bolti tasveer prastuti ke liya aabhar..
जवाब देंहटाएंNAVRATRI kee shubhkamnayen..