आजकल एक नया ट्रेंड चला है, या यूं कहिए वामी दल चला रहा है ।
अगर उनकी बात पे गौर करें तो ये लगेगा कि जो कुछ वे कर रहे हैं वो बिलकुल नॉर्मल बातें हैं, जरा सा असहमति का प्रदर्शन है जो कि हर लोकतन्त्र में नागरिक का हक़ है और एक विद्यालय के कैम्पस में कुछ पाँच छह सौ लोगों ने उसमें भाग लिया तो इसमें विचलित होने की कोई बात ही नहीं है ।
ऊपर से चिढ़ाते हैं - क्या सरकार इतनी कमजोर है कि इतनी छोटी घटना से डर जाये?
इस सब का मतलब एक ही है, गलती पकड़ी गई है तो पीछा छुड़वाना है ।
अब इसके बाद वे धीरे से एक और बात चला देते हैं । क्या है वो बात?
ये कहते हैं कि आम भारतीय इनके विरोध में हैं ही नहीं। यह तो बस कुछ गिने चुने हिन्दुत्ववादी हैं जिन्हें ये संघी कह कर पुकारते हैं ।इन वामियों के नजर में संघी होने से बुरा कुछ भी नहीं ।
एक बार कुतर्क इस मेढ़े पर टिका दिया फिर वहीं से ये शुरू हो जाते हैं । पूरी कवायद ये की जाती है कि संघी बुद्धि के पैदल होते हैं क्यूंकि अभी भी नब्बे साल पुरानी नेकर में घूमते हैं। संघी कूल डूड नहीं है, कुल मिलाकर बात को भटकाने की पुरजोर कोशिश करते हैं ।
फिर शुरू हो जाएँगे कि इन्हें तो तर्क देना आता ही नहीं । हम से लड़ने आएंगे तो खदेड़ दिये जाएँगे । हमारे जैसा इनका कोई अभ्यास है ही नहीं । दो मिनट में चर्चा में देश के सामने धज्जियां उड़ा देंगे । पहले हमारे बराबरी में आओ फिर आगे की बात ।
TRAP यही होता है, और उसे ही तोड़ना है । एक ही मार्के के सवाल से यह तिलिस्म टूटेगा ।
इनके जो नित्यस्मरणीय भगवान हैं - लेनिन, चे, कास्ट्रो,माओ, हो चि मिन्ह - इनहोने किससे तर्क किए थे? कितने बुद्धूजीवी थे उनके साथ ? या फिर, सत्ता में आने के बाद, कितने लोकतान्त्रिक रहे ये कम्यूनिज़्म के भगवान ?
हर किसी ने लोकभावना को जगाया है । एक लहर की ताकद बनाई है और सत्ता हासिल की है । सत्ता में आने के बाद वही किया जो पिछले राज्यकर्ता करते आए, बस क़िबला बदल दिया इतनाही फर्क । पहले के राजा रानी अगर पुजारी वर्ग के सहारे खुद को ईश्वरीय अंश वगैरा बताते थे तो यहाँ इनहोने बिकाऊ विद्वानों को प्रश्रय दे कर नए लेबल बनवा लिए । चूंकि कृपा प्रार्थना के लिए कोई भगवान नहीं था, इनहोने शत्रु गढ़ लिए । प्रजा को जो मुश्किलें इनके कारण भुगतनी पड़ती उसके लिए कोई शत्रु जिम्मेदार ठहराया जाता । सवाल उठाना --- द्रोह ! देश द्रोह, राज द्रोह जो मन में आए, पूछनेवाला कौन ? जो सत्ता के खिलाफ था वो गणशत्रु घोषित हो जाता । अपनी ताकत का बेशर्म उपयोग कर के अन्य मुल्कों में भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन करने में कम्युनिस्ट कभी न हिचकिचाये । एक किस्सा बताता हूँ ।
खोमेनी ने बिना पढे ही सलमान रश्दी की Satanic Verses को ban करवाया था आप तो जानते होंगे । वैसे इस्लाम तो गैर इस्लामियों की अभिव्यक्ति की आजादी वगैरा मानता नहीं कभी । जिंदा रहने देता है वही मेहरबानी जताता है । लेकिन वामियों ने Animal Farm को भी ban करवा रखा था यह भी आप को पता होना चाहिए । आप के कौन से मुंह से अभिव्यक्ति की आजादी के नारे लगा रहे हो कॉमरेड, असहिष्णुता की बू आ रही है ।
भारत में इनहोने हिंदुओं की नस जान ली । शान्तिप्रिय लोग हैं, सहनशील भी हैं । झट से झूठ पर भी विश्वास रख लेते हैं और पकड़े जानेपर भी माफ कर देते हैं । कम से कम जान से तो नहीं मारा करते । पापी पेट के लिए होता है यह सब कह कर आगे निकल जाते हैं । कुछ लोग छोड़े तो ज़्यादातर लोग झगड़े में नहीं पड़ना चाहते । ऊपर से त्राताहीन स्थिति । न नेता न जात, कोई न देगी साथ । इसलिए सरकारी तंत्र से बच कर रहना स्वाभाविक सा हो गया ।
Macaulay ने यह बात ठसा कर भर दी थी कि भारत का ज्ञान तुच्छ है । उसकी Note मिल जाएगी नेट पर, पढ़ लीजिये । बड़ी तुच्छता से लिखता है कि समूचे भारत का ज्ञान जितना है वो यूरोप की किसी सामान्य लाइब्ररी के एक शेल्फ के बराबर है । यही तुच्छता भी हिन्दुओने कुबूल की और जो अङ्ग्रेज़ी जाने वो अधिक शिक्षित यह समीकरण सा बन गया । अब जो बोले अङ्ग्रेज़ी वो वाकई ज्ञानी भी है या बस करे हैं लफ्फाजी ?
इनकी देशभक्ति (?) को परखने का हक हमें हो न हो लेकिन दूसरों को विद्वान या मूर्ख ठहराने का टेंडर इनहोने अपने ही नाम निकलवा लिया है । विद्वान तो अपने खेमे से बाहर किसी को भी मानते नहीं - बशर्ते USA में कहीं कोई वृत्ति मिलती हो - लेकिन बाकियों को सारे लाल कौवों का झुंड इकट्ठा हो कर मूर्ख सर्टिफाय कर देता है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक सोची समझी नीति के तहत इनका काम चल रहा है भारत के युवा वर्ग में भारत के प्रति घृणा पैदा करने का । काफी सफल भी रहे हैं क्यूंकी आज हमें अजीब नहीं लगता अगर कोई कहता है कि "इंडिया में रखा ही क्या है"। इंडिया, भारत या हिंदुस्तान नहीं यह बात नोट की जाये । फिर भी, यह भूमी और संस्कृति से नाभिनाल का संबंध ही कहना चाहिये कि अभी भी कोई भारत का नुकसान करने की बात करता है तो NRI के भी खून में उबाल आता है ।
इसी नीति के तहत जारी है हिंदुओं का बधियाकरण । अंग्रेज़ ने हिन्दू को नि:शस्त्र किया, काँग्रेस ने निस्तेज ! वो भेड़ों की नस्ल बना दी जिन्हें सींग भी नहीं आते । और इस निस्तेजीकरण में सब से अग्रणी कौन थे तो वामी, क्योंकि शिक्षा का महत्व वे जानते हैं । The Left has played a stellar role in ensuring India has been left behind by a large gap - both physical and mental - behind the erstwhile masters and their colonial cousins who have taken on the White Man's Burden for the profits it yields.
शिक्षा को प्रगति का मार्ग बनाया लेकिन मार्ग का टोल टैक्स काफी है, सो अपने आप इसी मार्ग को अपनाने वालों की संतति की संख्या कम हो गई । संतान बहुत बड़ी लागत हो गई जिसको हर झगड़े से सुरक्षित रखना माँ बाप के लिए सब से अहम मुद्दा बन गया । इसमें संतान नर न रहकर nerd बन गई लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि यही ठसाया जा रहा था कि आप सही जा रहे हैं ।
इस पीढ़ी को यह बताया जा रहा है कि संघर्ष केवल वैचारिक होते हैं और विचारों से ही विचारों का मुक़ाबला किया जा सकता है, और आप अगर भारतीय राष्ट्रभक्त हैं तो आप वामी नहीं हैं इसलिए औटोमैटिकली आप क्वालिफ़ाई भी नहीं करते । पहले कुछ पढ़िये, हमारे बराबरी में आइये, फिर सोचते हैं ।
एक मिनट ! विचारों से ही विचारों का मुक़ाबला किया जा सकता है यह बात एक हद तक ही सही होती है । अपना विचार सबका विचार बनाकर सत्तारूढ़ पक्ष का विकल्प बना जाता है, लेकिन मुक़ाबला दोनों विरोधी विचारों से प्रेरित फौजों का होता है, दो लफ्फाजी करनेवालों का नहीं । भारत लोकतन्त्र है इसलिए डिबेट सत्तान्तर में सहायक होती है । और इसीलिए ये वामी आप का केवल उपहास उड़ाते रहते हैं कि आप हमसे चर्चा के भी लायक नहीं । लेकिन केवल चर्चा ही सब से बड़ी बात नहीं होती ।
इसीलिए मैंने शुरुवात में इन वामियों के प्रात:स्मरणीय विभूतियों की बात की थी । आज ये वामी वही बात देख रहे हैं कि 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के नारों से देश सुलग उठा है । और ये नारों के समर्थन में ये खुलकर बाहर आए तो जनमत यह भी बन गया कि देशद्रोही का साथी भी कम देशद्रोही नहीं होता । किसी को यह बनाना जरूरी नहीं पड़ा, और मीडिया इनके ताबे में हो कर भी यह इस जनमत को बदल न सके । जितना भी इनहोने देशद्रोह या देशद्रोहियों का समर्थन किया, इनके भी चरित्र खुलने शुरू हुए ।
आज इन्हें डर एक ही बात का है कि वक़्त के पहले ही प्लान फूटा । वक़्त ? हाँ, वो घड़ी जब भारत के पास इनके हमले से खुद को संभालने का वक़्त न बचा रहे । क्या आप तैयार भी हैं ऐसे वक़्त के लिए ? खैर, बात इनके डर की थी । इन्हें डर है पीटनेका और इसीलिए वैचारिक युद्ध की बातों में उलझाए रखना चाहते हैं ताकि मूल बात साइड लाइन हो जाये । यह गलती मत करिएगा और इन्हें भी याद कराइएगा कि लेनिन, माओ, चे, कास्ट्रो की क्रांतिया हिंसक ही थी । याद दिलाने का तरीका आप पर निर्भर होगा ।
और हाँ, क्या आप ने कभी देखा है उन्हें मुसलमानों को या इसाइयों को कुछ कहते हुए ? क्या कहा, कुत्ता मालिक पर नहीं भौंकता? चलिये, आप को एक बात बताऊँ, चलते चलते ।
1400 वर्षों में इस्लाम ने 270 मिलियन जाने ली । और 100 वर्ष भी पूरे नहीं हुए तो कम्यूनिज़्म 95 मिलियन जाने लील गया है । एक मिलियन - 1,000,000
और हाँ, यह मत कहिएगा कि "इंडिया में रखा ही क्या है?" हजारों सालों से आज तक लगातार हमलावर यूं ही टाइम पास के लिए नहीं आ रहे ।
अगर उनकी बात पे गौर करें तो ये लगेगा कि जो कुछ वे कर रहे हैं वो बिलकुल नॉर्मल बातें हैं, जरा सा असहमति का प्रदर्शन है जो कि हर लोकतन्त्र में नागरिक का हक़ है और एक विद्यालय के कैम्पस में कुछ पाँच छह सौ लोगों ने उसमें भाग लिया तो इसमें विचलित होने की कोई बात ही नहीं है ।
ऊपर से चिढ़ाते हैं - क्या सरकार इतनी कमजोर है कि इतनी छोटी घटना से डर जाये?
इस सब का मतलब एक ही है, गलती पकड़ी गई है तो पीछा छुड़वाना है ।
अब इसके बाद वे धीरे से एक और बात चला देते हैं । क्या है वो बात?
ये कहते हैं कि आम भारतीय इनके विरोध में हैं ही नहीं। यह तो बस कुछ गिने चुने हिन्दुत्ववादी हैं जिन्हें ये संघी कह कर पुकारते हैं ।इन वामियों के नजर में संघी होने से बुरा कुछ भी नहीं ।
एक बार कुतर्क इस मेढ़े पर टिका दिया फिर वहीं से ये शुरू हो जाते हैं । पूरी कवायद ये की जाती है कि संघी बुद्धि के पैदल होते हैं क्यूंकि अभी भी नब्बे साल पुरानी नेकर में घूमते हैं। संघी कूल डूड नहीं है, कुल मिलाकर बात को भटकाने की पुरजोर कोशिश करते हैं ।
फिर शुरू हो जाएँगे कि इन्हें तो तर्क देना आता ही नहीं । हम से लड़ने आएंगे तो खदेड़ दिये जाएँगे । हमारे जैसा इनका कोई अभ्यास है ही नहीं । दो मिनट में चर्चा में देश के सामने धज्जियां उड़ा देंगे । पहले हमारे बराबरी में आओ फिर आगे की बात ।
TRAP यही होता है, और उसे ही तोड़ना है । एक ही मार्के के सवाल से यह तिलिस्म टूटेगा ।
इनके जो नित्यस्मरणीय भगवान हैं - लेनिन, चे, कास्ट्रो,माओ, हो चि मिन्ह - इनहोने किससे तर्क किए थे? कितने बुद्धूजीवी थे उनके साथ ? या फिर, सत्ता में आने के बाद, कितने लोकतान्त्रिक रहे ये कम्यूनिज़्म के भगवान ?
हर किसी ने लोकभावना को जगाया है । एक लहर की ताकद बनाई है और सत्ता हासिल की है । सत्ता में आने के बाद वही किया जो पिछले राज्यकर्ता करते आए, बस क़िबला बदल दिया इतनाही फर्क । पहले के राजा रानी अगर पुजारी वर्ग के सहारे खुद को ईश्वरीय अंश वगैरा बताते थे तो यहाँ इनहोने बिकाऊ विद्वानों को प्रश्रय दे कर नए लेबल बनवा लिए । चूंकि कृपा प्रार्थना के लिए कोई भगवान नहीं था, इनहोने शत्रु गढ़ लिए । प्रजा को जो मुश्किलें इनके कारण भुगतनी पड़ती उसके लिए कोई शत्रु जिम्मेदार ठहराया जाता । सवाल उठाना --- द्रोह ! देश द्रोह, राज द्रोह जो मन में आए, पूछनेवाला कौन ? जो सत्ता के खिलाफ था वो गणशत्रु घोषित हो जाता । अपनी ताकत का बेशर्म उपयोग कर के अन्य मुल्कों में भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन करने में कम्युनिस्ट कभी न हिचकिचाये । एक किस्सा बताता हूँ ।
खोमेनी ने बिना पढे ही सलमान रश्दी की Satanic Verses को ban करवाया था आप तो जानते होंगे । वैसे इस्लाम तो गैर इस्लामियों की अभिव्यक्ति की आजादी वगैरा मानता नहीं कभी । जिंदा रहने देता है वही मेहरबानी जताता है । लेकिन वामियों ने Animal Farm को भी ban करवा रखा था यह भी आप को पता होना चाहिए । आप के कौन से मुंह से अभिव्यक्ति की आजादी के नारे लगा रहे हो कॉमरेड, असहिष्णुता की बू आ रही है ।
भारत में इनहोने हिंदुओं की नस जान ली । शान्तिप्रिय लोग हैं, सहनशील भी हैं । झट से झूठ पर भी विश्वास रख लेते हैं और पकड़े जानेपर भी माफ कर देते हैं । कम से कम जान से तो नहीं मारा करते । पापी पेट के लिए होता है यह सब कह कर आगे निकल जाते हैं । कुछ लोग छोड़े तो ज़्यादातर लोग झगड़े में नहीं पड़ना चाहते । ऊपर से त्राताहीन स्थिति । न नेता न जात, कोई न देगी साथ । इसलिए सरकारी तंत्र से बच कर रहना स्वाभाविक सा हो गया ।
Macaulay ने यह बात ठसा कर भर दी थी कि भारत का ज्ञान तुच्छ है । उसकी Note मिल जाएगी नेट पर, पढ़ लीजिये । बड़ी तुच्छता से लिखता है कि समूचे भारत का ज्ञान जितना है वो यूरोप की किसी सामान्य लाइब्ररी के एक शेल्फ के बराबर है । यही तुच्छता भी हिन्दुओने कुबूल की और जो अङ्ग्रेज़ी जाने वो अधिक शिक्षित यह समीकरण सा बन गया । अब जो बोले अङ्ग्रेज़ी वो वाकई ज्ञानी भी है या बस करे हैं लफ्फाजी ?
इनकी देशभक्ति (?) को परखने का हक हमें हो न हो लेकिन दूसरों को विद्वान या मूर्ख ठहराने का टेंडर इनहोने अपने ही नाम निकलवा लिया है । विद्वान तो अपने खेमे से बाहर किसी को भी मानते नहीं - बशर्ते USA में कहीं कोई वृत्ति मिलती हो - लेकिन बाकियों को सारे लाल कौवों का झुंड इकट्ठा हो कर मूर्ख सर्टिफाय कर देता है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि एक सोची समझी नीति के तहत इनका काम चल रहा है भारत के युवा वर्ग में भारत के प्रति घृणा पैदा करने का । काफी सफल भी रहे हैं क्यूंकी आज हमें अजीब नहीं लगता अगर कोई कहता है कि "इंडिया में रखा ही क्या है"। इंडिया, भारत या हिंदुस्तान नहीं यह बात नोट की जाये । फिर भी, यह भूमी और संस्कृति से नाभिनाल का संबंध ही कहना चाहिये कि अभी भी कोई भारत का नुकसान करने की बात करता है तो NRI के भी खून में उबाल आता है ।
इसी नीति के तहत जारी है हिंदुओं का बधियाकरण । अंग्रेज़ ने हिन्दू को नि:शस्त्र किया, काँग्रेस ने निस्तेज ! वो भेड़ों की नस्ल बना दी जिन्हें सींग भी नहीं आते । और इस निस्तेजीकरण में सब से अग्रणी कौन थे तो वामी, क्योंकि शिक्षा का महत्व वे जानते हैं । The Left has played a stellar role in ensuring India has been left behind by a large gap - both physical and mental - behind the erstwhile masters and their colonial cousins who have taken on the White Man's Burden for the profits it yields.
शिक्षा को प्रगति का मार्ग बनाया लेकिन मार्ग का टोल टैक्स काफी है, सो अपने आप इसी मार्ग को अपनाने वालों की संतति की संख्या कम हो गई । संतान बहुत बड़ी लागत हो गई जिसको हर झगड़े से सुरक्षित रखना माँ बाप के लिए सब से अहम मुद्दा बन गया । इसमें संतान नर न रहकर nerd बन गई लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि यही ठसाया जा रहा था कि आप सही जा रहे हैं ।
इस पीढ़ी को यह बताया जा रहा है कि संघर्ष केवल वैचारिक होते हैं और विचारों से ही विचारों का मुक़ाबला किया जा सकता है, और आप अगर भारतीय राष्ट्रभक्त हैं तो आप वामी नहीं हैं इसलिए औटोमैटिकली आप क्वालिफ़ाई भी नहीं करते । पहले कुछ पढ़िये, हमारे बराबरी में आइये, फिर सोचते हैं ।
एक मिनट ! विचारों से ही विचारों का मुक़ाबला किया जा सकता है यह बात एक हद तक ही सही होती है । अपना विचार सबका विचार बनाकर सत्तारूढ़ पक्ष का विकल्प बना जाता है, लेकिन मुक़ाबला दोनों विरोधी विचारों से प्रेरित फौजों का होता है, दो लफ्फाजी करनेवालों का नहीं । भारत लोकतन्त्र है इसलिए डिबेट सत्तान्तर में सहायक होती है । और इसीलिए ये वामी आप का केवल उपहास उड़ाते रहते हैं कि आप हमसे चर्चा के भी लायक नहीं । लेकिन केवल चर्चा ही सब से बड़ी बात नहीं होती ।
इसीलिए मैंने शुरुवात में इन वामियों के प्रात:स्मरणीय विभूतियों की बात की थी । आज ये वामी वही बात देख रहे हैं कि 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के नारों से देश सुलग उठा है । और ये नारों के समर्थन में ये खुलकर बाहर आए तो जनमत यह भी बन गया कि देशद्रोही का साथी भी कम देशद्रोही नहीं होता । किसी को यह बनाना जरूरी नहीं पड़ा, और मीडिया इनके ताबे में हो कर भी यह इस जनमत को बदल न सके । जितना भी इनहोने देशद्रोह या देशद्रोहियों का समर्थन किया, इनके भी चरित्र खुलने शुरू हुए ।
आज इन्हें डर एक ही बात का है कि वक़्त के पहले ही प्लान फूटा । वक़्त ? हाँ, वो घड़ी जब भारत के पास इनके हमले से खुद को संभालने का वक़्त न बचा रहे । क्या आप तैयार भी हैं ऐसे वक़्त के लिए ? खैर, बात इनके डर की थी । इन्हें डर है पीटनेका और इसीलिए वैचारिक युद्ध की बातों में उलझाए रखना चाहते हैं ताकि मूल बात साइड लाइन हो जाये । यह गलती मत करिएगा और इन्हें भी याद कराइएगा कि लेनिन, माओ, चे, कास्ट्रो की क्रांतिया हिंसक ही थी । याद दिलाने का तरीका आप पर निर्भर होगा ।
और हाँ, क्या आप ने कभी देखा है उन्हें मुसलमानों को या इसाइयों को कुछ कहते हुए ? क्या कहा, कुत्ता मालिक पर नहीं भौंकता? चलिये, आप को एक बात बताऊँ, चलते चलते ।
1400 वर्षों में इस्लाम ने 270 मिलियन जाने ली । और 100 वर्ष भी पूरे नहीं हुए तो कम्यूनिज़्म 95 मिलियन जाने लील गया है । एक मिलियन - 1,000,000
और हाँ, यह मत कहिएगा कि "इंडिया में रखा ही क्या है?" हजारों सालों से आज तक लगातार हमलावर यूं ही टाइम पास के लिए नहीं आ रहे ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " श्रीनिवास रामानुजन - गणित के जादूगर की ९६ वीं पुण्यतिथि " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंdhanyawaad ...
जवाब देंहटाएंआपकी पूरी पोस्ट पढ़कर तो वही बात सामने आती है जिसकी आप आलोचना कर रहे हैं। आप हिंदुत्ववादियों और हिन्दुओं के बीच का अंतर् या तो समझ नहीं रहे हैं या जानबूझकर घालमेल कर रहे हैं। देश का हिन्दू शांति चाहता है सही बात है, हर धर्म या समुदाय से जुड़ा आम आदमी शांति ही चाहता है। लेकिन क्या हिन्दुत्ववादी शांति चाहते हैं। अगर चाहते हैं तो फिर दाभोलकर, कलबुर्गी और पानसरे की हत्या कोनसी शांति का प्रदर्शन है। जहां तक बुद्धिजीवी साथ ना होने का सवाल है तो आप बताइए की हिंदूवादियों के साथ कोनसा अंतर्राष्ट्रीय मान्यताप्राप्त इतिहासकार या बुद्धिजीवी है। इनकी संख्या तो अनुपम खेर और दीनानाथ बत्रा से आगे नहीं बढ़ती।
जवाब देंहटाएंदूसरा आपने अंग्रेजों के द्वारा हिन्दुओ को शस्त्र विहीन करने की बात कहि। देश के लाखो हिन्दू आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। शस्त्र विहीन और रीड वहीं कोई था तो केवल संघ था और अपनी मर्जी से था।
आपने JNU का जिक्र किया, तो अब तो ये साबित हो चूका है की देशविरोधी नारे लगने वाले ABVP के लोग थे और बीजेपी समर्थित चैनलों ने फर्जी विडिओ चलाकर दोष दूसरों पर डाला। पूरी दुनिया में अगर वामपंथियों का सम्मान है तो उनकी कुर्बानियों के लिए है। आप तो आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाला आरएसएस का एक नाम नहीं बता सकते।
पहली बात तो ये की मैं हिन्दुओ और हिन्दुत्व्वादियों में फर्क जनता हूँ। किसी भी तरह से किसी भी धर्म मे कट्टरता का समर्थन नहीं करता । आपने कलबुर्गी की और अन्य लोगो की हत्यायों की बात की पर केरल में शांतिदूतो द्वारा की जा रही हत्यायों पर कुछ नहीं कहा । जब एक भीड़ किसी अखलाख की हत्या करती है तो वामपंथीओ को लोकतंत्र खतरे में दिखता है पर जब एक भीड़ दिल्ली में डॉक्टर नारंग की हत्या शांतिदूतो द्वारा कर दी जाती है तो वामपंथी इसे कुछ भटके हुए मासूमो द्वारा किया गया बताते है । वामपंथी ही हैदराबाद में वेमुल्ला को जो की ओ बी सी था को दलित बताकर हंगामा काटा था और जब वहाँ यूनिवर्सिटी प्रशासन काम कर रहा था तो कह रहे थे पुलिस को काम करना चाहिए न की प्रशाशन को अब जब वही पुलिस दिल्ली में जे एन यू में गयी तो बोलने लगे पुलिस को अंदर आने का हक़ ही नहीं है और फिर जब कश्मीर में पुलिस ने कैम्पस में घुस कर गैर कशमीरी छात्रों को पीटा तब वामपंथियों को सांप सूंघ गया । वामपंथियों का चरित्र हमेशा से ऐसा ही रहा है । ये जहां भी रहे है तानाशाह ही रहे हैं रशिया चीन इसके बड़े उदहारण है जहाँ छात्रों को टैंक से कुचल दिया गया था । जितना नरसंहार वामपंथियों ने किया है शायद ही किसी और ने किया हो । जनाब वामपंथियों ने कुर्बनिया दी नहि है बल्कि नरसंहार किया है और इनके सम्मान का आलम आप अपने देश भारत में ही देख लिजिये सिमटते जां रहे हैं .अगर सम्मान होता तो बढ़ते घटते नही |
हटाएंवामपंथियों का चरित्र दोहरा है , वामपंथियों कि प्रवित्ति तनाशाही है | इनकी कोइ इज़्ज़त नहीं | और हान मुझे नहीं मालूम कि संघ का कोई था या नही आजादी के संघर्ष में पर यह देश का सबसे बड़ा संगठन ऐसे तो नही होगा बीना किसी सम्मान के और हान मुझे किसी वामपंथी का भि नाम याद नही आता जो आजादी के लिए संघर्ष किया हो , हो सके तो बतयियेगा |