शुक्रवार, 3 जून 2016

जीने का सही तरीका सिखाती है महाभारत

हर अच्छी किताब पढऩे के कुछ फायदे हैं। यदि बारीकी से शब्दों को पकड़ेंगे तो हम पाएंगे किताब में चार संदेश जरूर होते हैं। कैसे रहें, कैसे करें, कैसे जिएं और कैसे मरें। यह चार सवाल हर मनुष्य के जीवन में खड़े होते ही हैं। 


यूं तो अनेक पुस्तकें हैं, पर आज हम भारतीय संस्कृति की चार किताबों पर नजर डालेंगे। महाभारत हमारा एक ग्रंथ है जो हमको रहना सिखाती है। गीता हमें करना सिखाती है। रामायण जीना सिखाती है और भागवत हमें मरना सिखाती है। महाभारत हमें रहना सिखाती है यानी आर्ट ऑफ लिविंग, कैसे रहें, जीवन की क्या परंपराएं हैं, क्या आचार संहिता, क्या सूत्र हैं, संबंधों का निर्वहन कैसे किया जाता है ये महाभारत से सिखा जा सकता है। क्या भूल जीवन में होती है कि जीवन कुरूक्षेत्र बन जाता है। हम लोग सामाजिक प्राणी हैं। इसलिए नियम, कायदे और संविधान से जीना हमारा फर्ज है। महाभारत में अनेक पात्रों ने इन नियम-कायदों का उल्लंघन किया था। छोटी सी घटना है महाभारत के मूल में। 

जब आप वचन देकर मुकर जाएं तो या तो सामने वाला आपकी इस हठधर्मिता को स्वीकार कर ले, या विरोध करे। और विरोध होने पर निश्चित ही युद्ध होगा। पाण्डव कौरवों से जुएं में हार गए। पहली बात तो यह है कि जुआ खेलना ही गलत था। गलत काम के सही परिणाम हो ही नहीं सकते। 

दूसरी बात हारने पर उन्हें वनवास जाना था और जंगल से लौटने पर कौरव पाण्डवों को उनका राज्य लौटाने वाले थे, लेकिन कौरवों की ओर से दुर्योधन ने साफ कह दिया कि सूई की नोंक से नापा जा सके इतना धरती का टुकड़ा भी नहीं दूंगा और इस एक जिद ने महाभारत जैसा युद्ध करवा दिया। हम समाज, परिवार में रहते हैं, किए हुए वादे को निभाना हमारा फर्ज है। जुबान दी है तो बात पूरी तरह निभाई जाए।

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