मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

एकलव्य न तो भील थे और न ही आदिवासी ........




एकलव्य को लेकर समाज में बहुत तरह की भ्रांतियां इसलिए है ।सभी ने महाभारत की इस कथा को तोड़-मरोड़कर अपने-अपने तरीके से लिखा। एकलव्य को इस बात का कभी दुख नहीं हुआ कि गुरु द्रोणाचार्य ने उनसे अंगूठा मांग लिया। इस घटना को कुछ लोगों के समूह ने गलत अर्थो में लिया और उस अर्थ को बड़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करके समाज में विभाजन किया। इस सामाजिक विभाजन को हवा देने वाले संगठन भी कौन है यह सब जानते हैं। एकलव्य निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र थे। एकलव्य  न तो भील थे और न ही आदिवासी वे निषाद जाति के थे। महाभारत लिखने वाले वेद व्यास किसी ब्राह्मण, छत्रिय जाति से नहीं थे वे भी निषाद जाति से थे।धृतराष्‍ट्र, पांडु और विदुर की दादी सत्यवती एक निषाद कन्या ही थी। सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पत्नियों ने वेदव्यास के नियोग से दो पुत्रों को जन्म दिया और तीसरा पुत्र दासी का था। अम्बिका के पुत्र धृतराष्ट, अम्बालिका के पुत्र पांडु और दासीपुत्र विदुर थे। एकलव्य एक राजपुत्र थे और उनके पिता की कौरवों के राज्य में प्रतिष्ठा थी। उस समय धनुर्विद्या में गुरु द्रोण की ख्याति थी। एकलव्य धनुर्विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता था तब गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष धर्मसंकट उत्पन्न हुआ क्योंकि उन्होंने भीष्म पितामह को वचन दे दिया था कि वे केवल कौरव कुल के राजकुमारों को ही शिक्षा देंगे और एकलव्य राजकुमार तो थे लेकिन कौरव कुल से नहीं थे। अतः उसे धनुर्विद्या कैसे सिखाऊं?अतः द्रोणाचार्य ने एकलव्य से कहा- 'मैं विवश हूं तुझे धनुर्विद्या नहीं सिखा सकूंगा। एकलव्य घर से निश्चय करके निकला था कि वह केवल गुरु द्रोणाचार्य को ही अपना गुरु बनाएगा। हताश-निराश एकलव्य एक आदिवासी बस्ती में ठहर गया। आदिवासियों या भीलों के बीच रहने के कारण एकलव्य को शिकारी या भील जाति का मान लिया गया । एकलव्य ने आदिवासियों के बीच रहकर वहां गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाई और मूर्ति की ओर एकटक देखकर ध्यान करके उसी से प्रेरणा लेकर वह धनुर्विद्या सीखने लगा।
एक बार गुरु द्रोणाचार्य, पांडव एवं कौरव को लेकर धनुर्विद्या का प्रयोग करने अरण्य में आए। उनके साथ एक कुत्ता भी था, जो थोड़ा आगे निकल गया। कुत्ता वहीं पहुंचा जहां एकलव्य अपनी धनुर्विद्या का प्रयोग कर रहा था। एकलव्य को देखकर कुत्ता भौंकने लगा।
एकलव्य ने कुत्ते को चोट न पहुंचे और उसका भौंकना बंद हो जाए इस ढंग से सात बाण उसके मुंह में थमा दिए। कुत्ता वापिस गया, जहां गुरु द्रोणाचार्य के साथ पांडव और कौरव थे।
एकलव्य की प्रतिभा को देखकर द्रोणाचार्य संकट में पड़ गए।  उन्होंने कहा- 'मेरी मूर्ति को सामने रखकर तुमने धनुर्विद्या तो सीख ली, किंतु मेरी गुरुदक्षिणा कौन देगा?'
एकलव्य ने कहा- 'गुरुदेव, जो आप मांगें?'
 द्रोणाचार्य ने कहा- तुम्हें मुझे दाएं हाथ का अंगूठा गुरुदक्षिणा में देना होगा।'
एकलव्य ने एक पल भी विचार किए बिना अपने दाएं हाथ का अंगूठा काटकर गुरुदेव के चरणों में अर्पण कर दिया।
पिता की मृत्यु के बाद एकलव्य श्रृंगबेर राज्य का शासक बनता हैं और निषाद जाति के लोगों की एक सशक्त सेना गठित करता है ।एकलव्य जरासंध से जा मिला था। जरासंध की सेना की तरफ से उसने मथुरा पर आक्रमण करके यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। इसका उल्लेख विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण में मिलता है। यादव सेना के सफाया होने के बाद यह सूचना जब श्रीकृष्‍ण के पास पहुंचती है तो वे भी एकलव्य को देखने को उत्सुक हो जाते हैं। दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखकर वे समझ जाते हैं कि यह पांडवों और उनकी सेना के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। तब श्रीकृष्‍ण का एकलव्य से युद्ध होता है और इस युद्ध में एकलव्य वीरगति को प्राप्त होता है।

एकलव्य के वीरगति को प्राप्त होने के बाद उसका पुत्र केतुमान सिंहासन पर बैठता है और वह कौरवों की सेना की ओर से पांडवों के खिलाफ लड़ता है।

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