शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

वामपंथी विचारधारा -- एक बौद्धिक आतंकवाद





वामपंथी विचारधारा एक बौद्धिक आतंकवाद है और इनका अस्तित्व तभी तक है जब तक ये व्यवस्था में नीति निर्धारण में है ।  देश में लगातार अपना जनाधार खोने के कारन वामपंथी बौखला गया है जिसका परिणाम असहिष्णुता , अवार्ड वापसी, अफजल हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है के रूप में देखने को मिला । JNU  यूनिवर्सिटी इनका गढ़ है और जब इनके गढ़ में राष्ट्रवादी घुस आये है तो ये बौखलाए बौखलाए बौखलाए घूम रहे है और हर दिन एक नया प्रोपोगंडा रच के विषय से ध्यान हटाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है । हालाँकि ऐसा नहीं है की JNU  में ऐसी घटनाएं पहली बार हुयी हो इससे पहले भी कई बार इस प्रकार की घटनाएं हो चुकी है। 
जैसे की कैंपस में भारत - पकिस्तान मुशायरे में भारत विरोधी बातों का विरोध करने पर वामपंथियों द्वारा सैनिकों की पिटाई कर दी जाती है। दंतेवाड़ा में जब सैनिक शहीद होते है तो ये जश्न मानते है । महिसासुर दिवस मानते है और माँ दुर्गा को सेक्स वर्कर तक घोसित कर देते है । यह एक तरह का बौद्धिक आतंकवाद है
। इस प्रकार लगातार ये देश विरोधी और धार्मिक भावनाओ को भड़काने वाली गतिविधियाँ करते रहे थे पर इस बार देश ने इन्हें रंगे हांथो पकड़ लिया । आजतक वामपंथियों ने इसी के कारण आरएसएस को हासिये पर रख रखा था पर अब ऐसा नहीं है लेकिन अब ऐसा नहीं है , अब आमजनों में संघ के विचारों को लोग स्वीकार्य कर रहे है और इसी वजह से वामपंथी बौखला रहे है छटपटा रहे है । जब से देश आजाद हुआ है तब से अब तक वामपंथियों का ही शिक्षण और बौद्धिक संस्थानों पर कब्ज़ा था पर अब संघ की स्वीकार्यता बढ़ने के कारन इनका सिंहासन इन्हें  डोलता हुआ दिख रहा है इसलिए ये आरोप लगा रहे है की संघ अपनी विचारधारा थोप रहा है पर सभी जानते है ऐसा कुछ भी नहीं है । संघ हमेशा से अपनी विचारधरा पर अडिग रहा है और बौद्धिक विकास को समग्रता से विकसित करना  चाहता हैं। हम इनके बौद्धिक आतंकवाद को  इनके हर कुतर्क का मुंहतोड़ जवाब देकर कर सकते है । 


हम इस बौद्धिक आतंकवाद  से लेकर रहेंगे --- आजादी 

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