सोमवार, 25 अप्रैल 2016

जो भी है जैसा भी है बस बना रहे बनारस

 बनारस एक संस्कार है, बनारस एक संस्कृति है. बनारस की आदतें हैं, . बनारस का अपना स्वभाव है......बनारस के घाट, काशी की संस्कृति और यहां का हर रंग दुनिया को हमेशा खींचता रहा है...शायद इसलिए कि वहां तुलसी का अक्स दिखता है...  शायद इसलिए कि वहां संगीत अपनी गहराइयों के साथ मन में उतर जाता है।
 जब भी बनारस जाता हूं वहा से आने का मन नही करता। कल भी कुछ ऐसा ही था मै बनारस छोड़ रहा था कुछ उदास था और स्टेशन कि तरफ बढ़ रहा था । मैने देखा मेरे दाहिने तरफ से कुछ लोग लाश लिये जा रहे थे और बॉयी तरफ से एक बारात चली आ रही थी।  यह एक अद्भूत संगम था जीवन कि दो महत्वपूर्ण यात्राओं का एक को अभी अपने जीवन मे बहुत यात्राये करनी है तो एक अपने जीवन कि अंतिम यात्रा पर और इसपर दोनो तरफ के लोगो का एक दुसरे के प्रति सम्मान देखने लायक था। यह सिर्फ मैने बनारस मे ही देखा है। मै जब दिल्ली जाता हूं मेरे कुछ मित्र मुझसे पुछते है कि बनारस क्योटो कब बन रहा है तब मुझे ये समझ नहीं आता कि कैसे उन्हे बताउ कि बनारस अद्भूत है इसको समझने के लिये इसको जीना पड़ता है और जो एक बार बनारस को जी लेता है वो फिर इसे क्वोटो नही बनाना चाहेगा। यह मस्त मलंगो का शहर है इसे ऐसा ही रहना चाहिये ।

जो भी है जैसा भी है बस बना रहे बनारस .......


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