शनिवार, 14 अगस्त 2010

घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.

घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.

खेलता था आम की डाली पे जो
नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
घर की बातें ..................................

घर के आँगन में वो पौधा एक तुलसी का ,
हर प्रात उस तुलसी की पूजा मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वहां पे लेप मिटटी का ,
शाम के जलाते दिए को मैं नहीं भूला !
इन पलों को इन छनो को मैं संजोता हूँ !!
घर की बातें ...............................

हर रोज गंगा के किनारे सूर्य का ढलना ,
औ चमकते चाँद सा जल मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वो बहती दूर जाती नाव को ,
और वो गंगा की कलकल मैं नहीं भूला !
आज भी गंगा किनारा याद करता हूँ !!
घर की बातें ..............................

6 टिप्‍पणियां:

  1. खेलता था आम की डाली पे जो
    नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
    लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
    वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
    फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
    घर की बातें ..................................


    sunder bhav hain .....!!

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  2. बहुत सुन्दर भाव हैं कविता के .
    मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत शुक्रिया.

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  3. are wah.. bahut bhavpraan bahut khoobsurat likhate hain aap...haardik badhayee...

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