UPSC का रिजल्ट देखा और तब पता चला अपनी भाषा हिंदी की दुर्दशा 1000
में से केवल 24 हिंदी भाषी ही सेलेक्ट हुए क्यों? 2010 से पहले तो ऐसा नहीं
था ऐसा लगता है जैसे UPSC ने तय कर रखा है की हिंदी भाषी या अन्य भाषाओं
के छात्रों को लेना ही नहीं है। .. वैसे तो संविधान द्वारा हिंदी को
राष्ट्रभाषा व राजकाज की भाषा का दर्जा
दिए जाने के संकल्प के बावजूद हिंदी को आज तक उसका उचित स्थान नहीं मिल
पाया है, उस पर हिंदी को भीतर खाते पीछे धकेलने की कोशिश उससे जुड़े संकल्प
से मेल नहीं खाती।
हिन्दी
की मौजूदा स्थिति के लिए प्रशासन भी कम दोषी नहीं है। संसद से लेकर निम्न
पदों तक सभी कार्य अंग्रेजी भाषा में किये जाते हैं। क्या संसद में हिन्दी
भाषा में काम-काज नहीं किया जा सकता? तर्क दिया जाता है कि सभी लोग हिन्दी
नहीं जानते। क्या कभी उनसे पूछा गया है कि सभी लोग अंग्रेजी भी नहीं
जानते।
भारत एक ऐसा देश है जो स्वयं अपनी राष्ट्र भाषा से नज़रे चुराता है | आज अंग्रेजी माध्यम के स्कूल लोकप्रिय हो रहे हैं। हमारे बच्चों को हिन्दी में गिनती भी नहीं आती। क्या यह हमारे लिए शर्मनाक बात नहीं है? दरअसल हम भ्रम का शिकार है कि अंग्रेजी अकेली अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है जो पूरी दुनिया में समझी व बोली जाती है। सच्चाई यह है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में छह भाषायें चलती हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी, रूसी, चीनी, और अरबी । अंग्रेजी के बिना ही जापान ने जबरदस्त उन्नति की है। उसके इलैक्ट्रोनिक सामान व उपकरण बनाने में विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त देश है जिसके माल की खपत हर जगह है। यही दशा चीन की भी है, जो आज सारी दुनिया के बाजारों पर कब्जा जमा रहा है। अनेक देशों जिनमें लीबिया, ईराक व बांग्लादेश शामिल है ने एक झटके में अंग्रेजी को निकाल बाहर कर दिया।
भारत एक ऐसा देश है जो स्वयं अपनी राष्ट्र भाषा से नज़रे चुराता है | आज अंग्रेजी माध्यम के स्कूल लोकप्रिय हो रहे हैं। हमारे बच्चों को हिन्दी में गिनती भी नहीं आती। क्या यह हमारे लिए शर्मनाक बात नहीं है? दरअसल हम भ्रम का शिकार है कि अंग्रेजी अकेली अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है जो पूरी दुनिया में समझी व बोली जाती है। सच्चाई यह है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में छह भाषायें चलती हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी, रूसी, चीनी, और अरबी । अंग्रेजी के बिना ही जापान ने जबरदस्त उन्नति की है। उसके इलैक्ट्रोनिक सामान व उपकरण बनाने में विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त देश है जिसके माल की खपत हर जगह है। यही दशा चीन की भी है, जो आज सारी दुनिया के बाजारों पर कब्जा जमा रहा है। अनेक देशों जिनमें लीबिया, ईराक व बांग्लादेश शामिल है ने एक झटके में अंग्रेजी को निकाल बाहर कर दिया।
आजादी के इतने वर्ष हो गये, हिंदी में सारे काम हों, यह हम सुनिश्चित नहीं कर पाये. न्यायालय में सारे काम आज भी अंगरेजी में होते हैं. वादी को अपने केस में संबंध में कुछ पता नहीं चल पाता. हम ज़ोर- शोर से हिंदी दिवस मानते हैं. मानो हिंदी मृत हो गयी है. देश में राजभाषा के साथ ऐसा व्यवहार हमें मुंह चिढ़ाता प्रतीत होता है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार की हिंदी के प्रति निष्ठा को देखते हुए उसे इस पर सहानुभूति से पुनर्विचार करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें