शनिवार, 4 जुलाई 2009

मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं

मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं

है कहीं ब्याकुल धरा से मेघ मिलने को
तो कहिं हिमखन्ड आतुर बूंद बनने को
भ्रमर जैसे कुमुदनि में स्वयम को भूल जाता है
पतन्गा भस्म होने पर भि देखो मुस्कराता है
मैं तुम्हारि आग में तन मन जलाना चाहता हूं

मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं

तुम नहीं थे तब स्वयम से दूर था मैं जा रहा
श्रिष्टि का हर एक कण मुझमे कमीं था पा रहा
तुम ना थे तो कर सकीं थि, प्यार मिट्टि भि न मुझको
पास तुम आये जमाना पास मेरे आ रहा था
फिर समय कि क्रूर गति पर मुस्कराना चाहता हूं

मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं

8 टिप्‍पणियां:

  1. स्वागत है।
    थोड़ा और गहरे उतरें।
    वर्तनी दोष हटाएँ। इन्हें आज भी अच्छा नहीं माना जाता।

    जवाब देंहटाएं
  2. aapki rachna parshanshniy hai..
    likhte rahiye
    shubhkamnaoo k sath swagat hai

    जवाब देंहटाएं
  3. समय की क्रूर गति पर मुस्काराना चाहता हूं...
    संभावनाएं हैं...टटोलिए...

    जवाब देंहटाएं
  4. kitni baar dvaar se lautaa ,chukar ,band kivaar tumahre ,kaihin ye ek tarfaa pyaar to nahin .jo ho kashish hai dost ,bhaavpurn ,gun-gunaati si hai kavita .veerubhaai.

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छा है अंदाज़े-बयाँ।
    सुस्वागतम्।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

    जवाब देंहटाएं

website Development @ affordable Price


For Website Development Please Contact at +91- 9911518386