मंगलवार, 23 नवंबर 2010
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
एक नया ब्लॉग
मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
आज का विषय वेश्यावृत्ति और मानव तस्करी हैं
आज का विषय वेश्यावृत्ति और मानव तस्करी हैं
रविवार, 7 नवंबर 2010
बचपन की दीपावली, कुछ यादें

कहते है त्यौहार बच्चो के होते हैं , उनके लिए त्योहारों का अर्थ होता है नए कपडे, मिठाईयां इत्यादि | बच्चे त्योहारों का इंतज़ार करते है और बड़े सिर्फ छोटो की ख़ुशी के लिए शामिल होते है और अपना बचपन उनमें पाकर उन्हें खुश देखकर खुश होते है | मैंने कहीं ये शेर पढ़ा था याद नहीं किसने लिखा है ,
बच्चों के छोटे हांथों को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे
बचपन बीते एक अरसा बीत गया है पर बचपन की यादें अभी भी ताज़ा है जैसे कल की ही बात हो | बीती रात दीपावली बचपन की कई यादो को ताज़ा कर चली गयी | बचपन में दीपावली की आहट से ही मन परफुल्लित हो उठाता था , उस वक़्त कोई रोक - टोक नहीं कोई टेंशन नहीं बस दीपावली के जश्न मनाने का जोश रहता था और शायद यही वजह होती थी की हम बच्चो की दीपावली कम से कम एक हफ्ते पहले से शुरू हो जाती थी | सब लोग मिलकर पटाखे जलाते थे, दीप जलाते थे और कितने प्रेम सौहार्द और जोश के साथ दीपावली का आनंद लेते थे | बहुत मजा आता था | दिवाली के त्योहार के लिये हमारे पूरे घर में सफाई-पुताई का अभियान चलता था। दिवाली पर पूरा घर रोशनियों से जगमगा उठता था। मुझे यह सब कुछ बहुत अच्छा लगता था, इसीलिये मुझे दिवाली का त्योहार बचपन से ही बहुत पसंद है। हम आपने घरो , मंदिरों आदि स्थानों पर दीप जलाते थे ,पटाखे फोड़ते थे ,वैसे मेरे लिए दीपावली का एक अर्थ यह भी था की खूब सारे पटाखे फोड़ना और जमकर शैतानी करना, पर हमें दीपावली के सुबह का इंतज़ार रहता था की कब सुबह हो और हम ढेर सारे दिए लूट ले | हम उन दीयों से तराजू बनाते थे और पुरे दिन कुछ ना कुछ खेलते रहते थे | कभी कभी हम भाई - बहन दीयों को लेकर आपस में लड़ पड़ते थे | क्या दिन थे वो भी , काश वो दिन फिर से लौट आते ...................................
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
जगमग करती दिवाली फिर प्यार लुटाने आई है !!!

जगमग करती दिवाली फिर प्यार लुटाने आई है
हर जीवन में शुभ प्रकाश हो , ये संदेसा लायी है
जगमग - जगमग दीप जले हैं, सुन्दर - सुन्दर प्यारे - प्यारे
नन्हें हांथों में फुलझड़िया, देखो कितने लगते न्यारे
ख़ुशी लुटाती हर जीवन में , खुशियों का भण्डार दिवाली आई है
जगमग करती दिवाली फिर प्यार लुटाने आई है
दीप पर्व के इस अवसर पर मन के दीप जला लेना
प्रेम न्याय साहस औ सद्गुण, शुभाचरण अपना लेना
मानव हित का यह संदेसा , फिर से लेकर आई है
जगमग करती दिवाली फिर प्यार लुटाने आई है
उंच नीच का भेद मिटा कर दीप जलें सद्भाव लिए
दूर दूर तक जलते दीपक हम सबसे बस यहीं कहें
जियो दीप - सम तभी समझाना तुमने दिवाली मनाई है
जगमग करती दिवाली फिर प्यार लुटाने आई है
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम -- मेरा भारत महान!
नई दिल्ली। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में उठे विवादों को पीछे छोड़ते हुए दिल्लीवासी मेहमानों का स्वागत और खेलों का लुत्फ उठाने के लिए तैयार हैं। नए रूप में दिल्ली लोगों को सुखद अहसास करा रही है।खेलों के मद्देनजर राजधानी की सूरत बदल गई है। इसकी सुंदरता में विश्व स्तर के हवाई अड्डे, मेट्रो रेल सेवा, चमकती सड़कें. साफ-सुथरे बस स्टॉप और हरियाली युक्त फुटपाथ ने और इजाफा कर दिया है
निकायों की इस व्यवस्था पर राजधानी के धीरज साहनी ने आईएएनएस को बाताया, "राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता को लेकर नकारात्मक प्रचार किया गया। लेकिन अब खेलों के लिए राजधानी पूरी तरह से तैयार है, क्योंकि खेलों की सफलता देश की प्रतिष्ठा से जुड़ी है। "वहीं, दिल्ली के एक कारोबारी गीतांजलि गुलाटी ने कहा कि कनॉट प्लेस की सड़कों पर अव्यवस्था न होने से अच्छा लगता है। गली-चौराहों पर इतनी सुरक्षा और हरियाली पहले कभी नहीं दिखी थी। ये सारी चीजें खेलों के बाद भी होनी चाहिए।
अब आप देखे ए वीडियो....................
निकायों की इस व्यवस्था पर राजधानी के धीरज साहनी ने आईएएनएस को बाताया, "राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता को लेकर नकारात्मक प्रचार किया गया। लेकिन अब खेलों के लिए राजधानी पूरी तरह से तैयार है, क्योंकि खेलों की सफलता देश की प्रतिष्ठा से जुड़ी है। "वहीं, दिल्ली के एक कारोबारी गीतांजलि गुलाटी ने कहा कि कनॉट प्लेस की सड़कों पर अव्यवस्था न होने से अच्छा लगता है। गली-चौराहों पर इतनी सुरक्षा और हरियाली पहले कभी नहीं दिखी थी। ये सारी चीजें खेलों के बाद भी होनी चाहिए।
अब आप देखे ए वीडियो....................
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
प्रिय याद तुम्हारी आती है
प्रिया याद तुम्हारी आती है
शीतल मंद सुगंध पवन
जब मुझसे कुछ कह जाती है
रिमझिम सावन की बूंदे
जब धरती की प्यास बुझती है
और वाटिका मे कोयल जब
मीठे गीत सुनती है
बैठ अकेले कमरे में जब यादें
मीठे स्वप्न सजाती हैं
प्रिय याद तुम्हारी आती है
सावन भौरें कोयल के गीत
सब बेमानी हो जाती है
जब याद तुम्हारी आती है
प्रिय याद तुम्हारी आती है
शीतल मंद सुगंध पवन
जब मुझसे कुछ कह जाती है
रिमझिम सावन की बूंदे
जब धरती की प्यास बुझती है
और वाटिका मे कोयल जब
मीठे गीत सुनती है
बैठ अकेले कमरे में जब यादें
मीठे स्वप्न सजाती हैं
प्रिय याद तुम्हारी आती है
सावन भौरें कोयल के गीत
सब बेमानी हो जाती है
जब याद तुम्हारी आती है
प्रिय याद तुम्हारी आती है
शनिवार, 14 अगस्त 2010
घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.
घर की बातें , घर की चौखट याद करता हूँ.
खेलता था आम की डाली पे जो
नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
घर की बातें ..................................
घर के आँगन में वो पौधा एक तुलसी का ,
हर प्रात उस तुलसी की पूजा मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वहां पे लेप मिटटी का ,
शाम के जलाते दिए को मैं नहीं भूला !
इन पलों को इन छनो को मैं संजोता हूँ !!
घर की बातें ...............................
हर रोज गंगा के किनारे सूर्य का ढलना ,
औ चमकते चाँद सा जल मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वो बहती दूर जाती नाव को ,
और वो गंगा की कलकल मैं नहीं भूला !
आज भी गंगा किनारा याद करता हूँ !!
घर की बातें ..............................
खेलता था आम की डाली पे जो
नीम की डाली पे सावन का वो झूला !
लहलहाते फूल पीले वो जो सरसों के ,
वो पतंगें वो उमंगें मैं नहीं भूला !
फिर ये मंजर देखने को मैं तरसता हूँ.
घर की बातें ..................................
घर के आँगन में वो पौधा एक तुलसी का ,
हर प्रात उस तुलसी की पूजा मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वहां पे लेप मिटटी का ,
शाम के जलाते दिए को मैं नहीं भूला !
इन पलों को इन छनो को मैं संजोता हूँ !!
घर की बातें ...............................
हर रोज गंगा के किनारे सूर्य का ढलना ,
औ चमकते चाँद सा जल मैं नहीं भूला !
मैं नहीं भूला वो बहती दूर जाती नाव को ,
और वो गंगा की कलकल मैं नहीं भूला !
आज भी गंगा किनारा याद करता हूँ !!
घर की बातें ..............................
रविवार, 8 अगस्त 2010
चोट से मत ब्यथित हो मन
चोट से मत ब्यथित हो मन
चोट खा - खा के ही पत्थर मूर्ति का आकर लेता
इस धरा पर अर्चना का निज कई आधार देता
नित नया अवतार हो तुम
अडिग रह , ना धैर्य खो मॅन
निज हाथ में ले तुलिका ब्रह्मांड मे नवरंग भर दे
नये अक्षर नये स्वर से इक नयी उमंग भर दे
तुम रहो मौलिक भी ऐसे
जैसे खुद का हो सृजन
जाति भेद से जलते जग मे समता भाव की ब्रिष्टि कर दे
मलयाचल मंद सुगंध पवन हो ऐसी सुंदर सृष्टि कर दे
तुम भी सुंदर बन लो ऐसे
जैसे कोई हो आकर्षण
नभ से उँचे उठ कर के तुम अपनी पहचान बनो
परिवर्तन के साथ चलो तुम इतना गतिमान बनो
लो अतीत से केवल उतना
जितना तुमको हो पोषण
चोट खा - खा के ही पत्थर मूर्ति का आकर लेता
इस धरा पर अर्चना का निज कई आधार देता
नित नया अवतार हो तुम
अडिग रह , ना धैर्य खो मॅन
निज हाथ में ले तुलिका ब्रह्मांड मे नवरंग भर दे
नये अक्षर नये स्वर से इक नयी उमंग भर दे
तुम रहो मौलिक भी ऐसे
जैसे खुद का हो सृजन
जाति भेद से जलते जग मे समता भाव की ब्रिष्टि कर दे
मलयाचल मंद सुगंध पवन हो ऐसी सुंदर सृष्टि कर दे
तुम भी सुंदर बन लो ऐसे
जैसे कोई हो आकर्षण
नभ से उँचे उठ कर के तुम अपनी पहचान बनो
परिवर्तन के साथ चलो तुम इतना गतिमान बनो
लो अतीत से केवल उतना
जितना तुमको हो पोषण
रविवार, 1 अगस्त 2010
मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है
मित्र दिवस पर समर्पित एक कविता
मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है
जैसे पवन में सुगंध की मिठास है
मित्रता एक अतुलनीय सम्मान हैं विश्वास है
दुख के अंधेंरे में सुख का प्रकाश है
मित्रता कड़ी धूप में बरगद कि छाँव है
तपती हुई रेत पर रास्ते बताते हुए पाँव है
मित्रता आप से आपकी पहचान है
अपने गुनो अवागुणो का ज्ञान है
मित्रता अहं राग द्वेष ईर्ष्या का हवन है
प्रेम सौहार्द कर्म ज्ञान से निर्मित भवन है
मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है
जैसे पवन में सुगंध की मिठास है
मित्रता एक अतुलनीय सम्मान हैं विश्वास है
दुख के अंधेंरे में सुख का प्रकाश है
मित्रता कड़ी धूप में बरगद कि छाँव है
तपती हुई रेत पर रास्ते बताते हुए पाँव है
मित्रता आप से आपकी पहचान है
अपने गुनो अवागुणो का ज्ञान है
मित्रता अहं राग द्वेष ईर्ष्या का हवन है
प्रेम सौहार्द कर्म ज्ञान से निर्मित भवन है
शनिवार, 31 जुलाई 2010
है आनंद अकेलेपन में
है आनंद अकेलेपन में
जब तक चाहे हँसते रह लो
या फिर चाहे जी भर रो लो
कौन यहाँ जो तुझको रोके
कौन यहाँ जो तुझको टोके
कर लो वो सब जो है मन में
है आनंद अकेलेपॅन में
जीवन का विस्तार देख लो
प्रकृति के उस पार देख लो
अच्छे बुरे का ध्यान छोड़ तुम
जो चाहे अपरंपार देख लो
पा लो जो है जीवन में
है आनंद अकेलेपन में
जब आप अकेले होते है
खुद के भीतर भी खोते हैं
कुछ अच्छे कुछ बुरे किंतु
यादो के मोती पिरोते है
क्या क्या मिलता है हर क्षण में
है आनंद अकेलेपन में
तब आप समझ ये पाते हैं
क्यों भौरे गुन गुन गाते हैं
क्या पेड़ नशे में झूम रहा
क्यो बादल छा जाते हैं
क्यों ख़ुसबु बिखरी आज पवन में
है आनंद अकेलेपन में
जब तक चाहे हँसते रह लो
या फिर चाहे जी भर रो लो
कौन यहाँ जो तुझको रोके
कौन यहाँ जो तुझको टोके
कर लो वो सब जो है मन में
है आनंद अकेलेपॅन में
जीवन का विस्तार देख लो
प्रकृति के उस पार देख लो
अच्छे बुरे का ध्यान छोड़ तुम
जो चाहे अपरंपार देख लो
पा लो जो है जीवन में
है आनंद अकेलेपन में
जब आप अकेले होते है
खुद के भीतर भी खोते हैं
कुछ अच्छे कुछ बुरे किंतु
यादो के मोती पिरोते है
क्या क्या मिलता है हर क्षण में
है आनंद अकेलेपन में
तब आप समझ ये पाते हैं
क्यों भौरे गुन गुन गाते हैं
क्या पेड़ नशे में झूम रहा
क्यो बादल छा जाते हैं
क्यों ख़ुसबु बिखरी आज पवन में
है आनंद अकेलेपन में
शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
इस धरा का हर मनुश्य पैसे के लिए बिक गया है
कोमल कुसुम पुष्प सादृश्य वह
मन को बहुत सुहाति थी
हृदय हिलोरें लेता था जब वो
मुझसे मिलने आती थी
वादे कर कसमें खाए हम
सातो जनम निभाने का
सुख दुख में संभाव रहें
जीवन भर साथ बिताने का
दिवस एक इस हृदय पटल पर
ब्यावहारिकता का पाठ लिख गयी
कर ग़रीब का भाग्य ग़रीब तुम
धन वैभव के हाथ बिक गयी
आज समझ में बात ये आई
घटित हुआ क्यों ऐसा था
मेरे प्रेम में बाधक केवल
कुछ और नही बस पैसा था
घटना से प्रेरित ग़रीब अब
एक बात तो सीख गया है
इस धरा का हर मनुश्य
पैसे के लिए बिक गया है
मन को बहुत सुहाति थी
हृदय हिलोरें लेता था जब वो
मुझसे मिलने आती थी
वादे कर कसमें खाए हम
सातो जनम निभाने का
सुख दुख में संभाव रहें
जीवन भर साथ बिताने का
दिवस एक इस हृदय पटल पर
ब्यावहारिकता का पाठ लिख गयी
कर ग़रीब का भाग्य ग़रीब तुम
धन वैभव के हाथ बिक गयी
आज समझ में बात ये आई
घटित हुआ क्यों ऐसा था
मेरे प्रेम में बाधक केवल
कुछ और नही बस पैसा था
घटना से प्रेरित ग़रीब अब
एक बात तो सीख गया है
इस धरा का हर मनुश्य
पैसे के लिए बिक गया है
शुक्रवार, 11 जून 2010
बुधवार, 26 मई 2010
रविवार, 9 मई 2010
कुछ बीती बिस्म्रित बातें
मानस सागर के तट पर ,
ये तेज लहर की घातें |
कल कल ध्वनि से हैं कहती,
कुछ बीती बिस्म्रित बातें |
मधुमय मादक मुस्कान लिए ,
जब पहले देखा तुमको |
जन्मो का है साथ तुम्हारा,
ये लगा उसी क्षण मुझको |
मैं अपलक इन नयनो से ,
देखा करता उस छवि को |
जैसे सूर्यमुखी का पौधा,
देखा करता है रवि को |
ये तेज लहर की घातें |
कल कल ध्वनि से हैं कहती,
कुछ बीती बिस्म्रित बातें |
मधुमय मादक मुस्कान लिए ,
जब पहले देखा तुमको |
जन्मो का है साथ तुम्हारा,
ये लगा उसी क्षण मुझको |
मैं अपलक इन नयनो से ,
देखा करता उस छवि को |
जैसे सूर्यमुखी का पौधा,
देखा करता है रवि को |
कौंध दामिनी सी स्मृतिया , उर में आग लगा जाती हैं
कौंध दामिनी सी स्मृतिया , उर में आग लगा जाती हैं .
सम्मोहन स्वर मन में उभरे , बिरह मेघ जगा जाती हैं.
बिरह मेघ की बूंदों से नयन जलज हो जाते हैं.
सुन्या स्रादिस्य सूखे हृद्यांगन भावों से भर जाते हैं.
भाव भरे जब अंतर्मन में , मन पुलकित हो आह्लाद करे.
शुन्य मिलन हो आज प्रिये , ना अधरों पर अवसाद रहे.
भावभरी उस प्रेम सुधा का , हर पल हर छन पान करे.
कर आलिंगनबद्ध प्रतिग्या , आत्ममिलन का ग्यान करें.
हृदय तुम्हें देती हूँ प्रियतम , बंध कर हृदय मुक्त होते हैं.
देह नहीं है परिधि प्रणय की , दीव्य प्रणय उन्मुक्त होते हैं.
सम्मोहन स्वर मन में उभरे , बिरह मेघ जगा जाती हैं.
बिरह मेघ की बूंदों से नयन जलज हो जाते हैं.
सुन्या स्रादिस्य सूखे हृद्यांगन भावों से भर जाते हैं.
भाव भरे जब अंतर्मन में , मन पुलकित हो आह्लाद करे.
शुन्य मिलन हो आज प्रिये , ना अधरों पर अवसाद रहे.
भावभरी उस प्रेम सुधा का , हर पल हर छन पान करे.
कर आलिंगनबद्ध प्रतिग्या , आत्ममिलन का ग्यान करें.
हृदय तुम्हें देती हूँ प्रियतम , बंध कर हृदय मुक्त होते हैं.
देह नहीं है परिधि प्रणय की , दीव्य प्रणय उन्मुक्त होते हैं.
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