बहुत पुरानी बात है गांव में दो लोग रहते थे एक रामखेलावन और एक नरोत्तमदास । दोनों लोगो के साथ एक ही तरह की घटना हुई पर दोनों लोगो के घर पर उसका रियेक्सन अलग अलग मिला । हुआ यूँ की एक दिन रामखेलावन रात को कहीं से गांव आ रहे थे । रास्ते में एक आम का बगीचा पड़ता था उसे सब लोग भुतहा बगीचा कहते थे पर गांव जाने के लिए उसी बगीचे से जाना था नहीं तो घूम के जाने में एक दो घंटा ज्यादा लग जाता, देर वैसे भी हो गयी थी तो रामखेलावन , हनुमान चालीसा पढ़ते हुए उसी बगीचे से जाने लगे तभी उनको लगा कोई उनका पीछा कर रहा है वो पीछे मुड़ के देखे तो कोई नहीं दिखा वो फिर हनुमान चालीसा पढ़ते आगे बढ़ने लगे फिर खरखराहट की आवाज आने लगी रामखेलावन फिर रुक गए तो खरखराहट की आवाज भी आनी बंद हो गयी अब रामखेलावन की हालत खराब । उनका गला सूखने लगा और दिल की धड़कन तेज हो गयी वो और तेज तेज हनुमान चालीसा पढ़ने लगे और जितना तेज दौड़ सकते थे दौड़ लगा दी और घर पहुंचे और खरखराहट की आवाज उनके घर तक पीछा की जब वे धड़ाम से घर के बहार रखी खाट पर गिरे तब जा के खरखराहट की आवाज भी बंद हुयी । डर के मारे हाँथ पांव काँप रहे थे सांसे तेज चल रही थी पसीने पसीने हो गए थे रामखेलावन ,तभी उनके पिताजी बहार निकले और रामखेलावन को खाट पर पड़े देख बोले , अरे रामखेलौना तू कब आया और का हुआ काहे इतना हांफ रहा है रामखेलावन लगे चिल्लाने अरे बाबू अब जान ना बचिहै, भूतहवा बगइचा से आवत रहे, घरवा तक भूत दौड़ाए रहा अब ता जान ले के ही मानी , उनके बाबू जी भी डर गए । सुबह हुई गांव के लोग आये सारी बात बताई गयी तभी किसी ने देखा उनके गमछे में आम की एक लकड़ी फँसी है और उसमे कुछ पत्ते भी लगे है तब जा के पता चला की रामखेलावन जब दौड़ रहे थे तब खरखराहट की आवाज कहाँ से आ रही थी पर तब तक देर हो चुकी थी रामखेलावन के दिमाग में डर घर कर गया था अब वो किसी तर्क से संतुष्ट होने वाले नहीं थे । डर के वजह से बुखार आ गया , दवा भी दी गयी गयी पर बुखार फिर चढ़ जाता ।ऐसे ही 10 -15 दिन बीत गए पर बुखार ठीक नहीं हो रहा था तब गांव में किसी बुजुर्ग ने कहा की दवा से अब रमखेलौना ठीक न होइहै इसके डर का इलाज करो कउनो ओझा सोझा बुलाओ , पास वाले गांव में एक ओझा रहता था बुलाया गया उसने अपनी नौटंकी सुरु की रामखेलावन को नीम का धुंआ , मिर्चे का धुंआ और बीच बीच में डंडे से पिटाई लगाते हुए बोलता, चला जा नहीं तो बोतल में बंद कर गंगा में बहा दूंगा और करीब एक घंटे तक रामखेलावन की दुर्दशा करने के बाद बोतल में धुंए को भर के बोला लो भाई भूत को हमने बोतल में बंद कर दिया है इसे गंगा जी में बहा दो दुबारा नहीं आएगा । अब रामखेलावन के डर का इलाज हो गया था और उन्हें ये विश्वाश हो गया था की अब भूत वपास नहीं आने वाला तो धीरे धीरे उनकी तबियत ठीक हो गयी । ऐसा ही खिस्सा नरोत्तमदास के साथ भी हुआ , वो भी डरे हुए थे और चिल्ला रहे थे पर जैसे ही नरोत्तमदास के पिताजी ने सुना दिए कान के नीचे दो बोले भूत उतरा या अभी भी पकड़ा हुआ है । नरोत्तमदास उस समय चुप हो गए पर कुछ देर बाद फिर बोले की लगता है भूतवा हमारे दिमाग पर चढ़ गया है तो उनके पिताजी फिर दिए दो कंटाप कान के नीचे , अब जब भी नरोत्तमदास भूत का जीकर करते उनकी पिटाई हो जाती । नरोत्तमदास इस घटना को भूलने में ही अपनी भलाई समझी।
ये वामपंथी विचारधारा भी इसी भूत की तरह होती है लोगो को पता होता है की उनके गमछे में लकड़ी फँसी है पर फिर भी वो नहीं मानते भूत - भूत चिल्लाते रहते है और जिस किसी को पकड़े उसका और साथ वालों का जीना हराम कर देती है इसलिए इसका इलाज ज़रूरी है और इलाज जितना जल्दी हो जाए अच्छा है । अब जब भी आपको कोई वामपंथी विचारधारा के भूत से ग्रसित व्यक्ति दिखे तो देखे की उसके ऊपर उसका आसर कितना है और फिर उनका उचित इलाज करिये , विधि तो आप समझ ही गए होंगे .......
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