आजकल संघी होना पाप हो गया है । किसी विचारधारा से जुड़ना या उसे मानना मेरा अपना निजी फैसला है पर मिडीया मे संघी मतलब पापी है हो गया है ।पर कुछ भी कहिये , संघ आज भी विश्व का सबसे बड़ा संगठन है जो लोगो कि सेवा निष्काम भाव से कर रहा है पर नक्सलियो द्वारा जब हमारे सैनिक मारे जाते है ये चिरकुट वामपंथी जश्न मनाते है तब यही मिडीया इन्हे बुद्धिजीवी बताती है।
सच तो यह है कि देश में आज एक अजीब सी नौटंकी चल रही है. साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लोगों का जम कर बेवकूफ बनाया जा रहा है। वास्तव में यह सोचने की बात है कि हमें हमारे देश में रहने के लिए वो भाषा बोलनी पड़ती है जो तथाकथित धर्मनिर्पेक्षता की भाषा है... आज 67 वर्षों के बाद इस देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेकीं जा रही हैं...चलिए मान लेते हैं कि मुसलमान देश में अल्पसंख्यक हैं...लेकिन इसी देश में कश्मीर एक ऐसी जगह है जहां हिन्दू अल्पसंख्यक था...जब उसको कश्मीर से निकाला जा रहा था तो किसी बुद्धिजीवी ने इस बारे में तो आवाज नही उठाई...आज वो हिन्दू कहां है किस हाल में हैं क्या किसी की जानने की इच्छा होती है...पता नही. घर में किसी भी बच्चे को क्या आप घर की कीमत पर मनमानी करने देते हैं...बात संख्या की नही है... समानता की होनी चाहिए... किसी भी तरह से किसी को भी अगर आप छूट देते हैं तो मान कर चलिए कभी भी दूरियां समाप्त नही होंगी. वोट बैंक के चलते नेताओ ने देश को छोटे छोटे टुकड़ों में बांट रखा है...कोई तो ऐसा प्रयास करे की ये संख्या की गिनती बंद हो...अब तो जाति के आधार पर जनगणना होनी की बात करने लगे हैं ये लोग.... क्या ये समाज को एक बार फिर तोड़ने की साजिश नही की जा रही है... गांधी की भी ज़रूरत है इस देश को...सावरकर की भी... कहीं ऐसा न हो गांधी के नाम पर राजनीति कर रहे लोग देश के गौरवशाली इतिहास से जुड़े अन्य लोगों के बलिदान को धीरे धीरे इतिहास के पन्नों से मिटा दे...कंग्रेसी चाहते हैं कि नेहरू और गांधी नाम से इतनी योजनाएं चलाई जाएं और इतनी जगहों के नाम उन पर रखे जाएं कि अगले युग में जब इतिहास जानने के लिए खुदाई हो तो उन्हीं के नाम के स्मारक निकलें। और तब यह शोध का विषय बने कि पता करो इन गांधी और नेहरू राजवंशों का साम्राज्य कहां तक था। इस देश के बुद्धिजीवियों पर मुझे तरस आता है कि उनकी कलम केवल आरएसएस के खिलाफ ही आग उगलती है। क्या राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से बड़े या समकक्ष महापुरुष इस देश में हुए ही नहीं क्या? क्या गांधी परिवार का त्याग भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव से भी बड़ा था?
अब एक नजर संघ की तरफ डालें। चूंकि संघ छपास का शौकीन नहीं है, इसलिए वह अपनी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार नहीं करता। इसी का फायदा उठाकर कांग्रेसी नेता संघ के बारे में गलत प्रचार करते रहते हैं। आपकी तरह मैंने भी कभी संघ की विधिवत सदस्यता नहीं ली और न ही कोई शाखा में उपस्थित रहा, लेकिन संघ के कुछ कार्यक्रमों के कवरेज के दौरान उसकी शिक्षा से रूबरू हुआ हूं। संघ अपनी शाखा में स्वयंसेवकों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सारा कार्य अपने हाथ से करना सिखाता है। वह भारतीय संस्कृति को अपनाने की सीख देता है। इसलिए कांग्रेसियों को बुरा लगता है, क्योंकि कांग्रेसी तो शुरू से ही विदेशियों के चम्मच रहे हैं और आज भी विदेशी की ही गुलामी कर रहे हैं।
कहने को कांग्रेस देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है, लेकिन उसमें राष्ट्रीय नेतृत्व लायक एक भी नेता नहीं है। वह तो आतंकवादियों को फांसी से बचाना ही अपना मूल धर्म मानती है।
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