सोमवार, 16 मई 2016

कहावतों और मुहाबरो को एक अलग नज़रिए से देखने की ज़रुरत




आज एक अजीब बात हुई | कभी कभी कुछ ऐसा घट जाता है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देता है | मैं जहाँ रहता हूँ वह पर एक दीदी रहती है उनकी लड़की कभी कभी मुझसे पढ़ने के लिए आती है कभी कभी कंप्यूटर या फिर हिंदी | मैं भी अपना ज्ञान बाट कर खुश हो जाता हूँ पर इस बार मैं चुप हो गया मेरे पास कोई  जवाब नहीं था उसके सवाल का, और मैं सोचने लगा शायद पुरानी कहावतों और मुहाबरो को एक अलग नज़रिए से देखने की ज़रुरत है | मैं थोडा कन्फ्यूज़  हूँ  शायद आप लोग मदद कर सके | हुआ यूँ की आज बिटिया आई और बोली कबीर का दोहा समझा दीजिये | मैंने कहा ठीक है दोहा बोलो 

दोहा : निंदक नियरे रखिये , आँगन कुटी छवाए ,
          बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे सुभाए |

मैंने उसे अपना ज्ञान बांटा या कहिये अर्थ समझाया 
" जो ब्यक्ति तुम्हारी आलोचना या बुराई करता है उसको हमेशा अपने पास रखना चाहिए , हो सके तो उसे अपने घर के आँगन में एक कुटिया बनाकर रहने दे , क्योंकि ऐसे ब्यक्ति हमें हमारे दोषों से परिचित करते हैं और इसी बहाने हमें सुधारने का अवसर प्रदान करते हैं | वास्तव में ये लोग हमें बिना साबुन और पानी के निर्मल करते हैं , क्योंकि साबुन और पानी तो केवल शारीर की गन्दगी को साफ़ करते हैं पर ये लोग हमारे अंतर्मन को निर्मल करते हैं |"

यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था पर इसके बाद जो वो बोली मेरे पास कोई उत्तर नहीं था उसने कहा की "ये तो गलत बात है , अगर हम उसको अपने घर में कुटिया बनाकर रहने देंगे तो वो इसको हमारा एहसान मानेगा और एहसान से दबने के बाद तो वो खुद ही निंदा करना भूल जायेगा "

जिस तरह से उसने कहा मेरे पास तत्काल कोई जवाब नहीं सुझा बस ये ही बोल पाया की ये सब परीक्षा में मत लिख देना नहीं तो जीरो मिलेगा | नंबर पाना है तो जितना बोला है उतना लिखो |

अब हमारे पास तो अभी तक कोई जवाब नहीं है शायद आप लोग हमारी कुछ मदद कर सकें ..............................

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